157/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नए जमाने की बातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
आजादी से पहले के तुम
हमें पूर्ण है आजादी
हमने पहनी जींस टॉप सब
तुमको प्रिय मोटी खादी
अब के युग की शह-मातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
तुम खाते थे सब्जी- रोटी
हम बर्गर पीज़ा में मस्त
नूडल चाऊमीन उड़ाते
ढिल्लमढिल्ल नहीं हम चुस्त
सहते तुम थप्पड़ लातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
कैरोसिन का लम्प जलाकर
रात - रात भर फोड़ीं आँख
आज देख लो बल्ब फ़क़ाफ़क
सावन भादों या वैशाख
बफ़र दावतें बारातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
मोबाइल तब एक नहीं था
हाथ - हाथ में अब मोबाइल
मुट्ठी में अब दुनिया सारी
कौन नहीं इसका काइल
अंतर राष्ट्रीय नातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
घूमा करते थे तुम नंगे
दस-दस साल बिना परिधान
आज हमारा क्या युग आया
बनी हमारी भी पहचान
देखा है बोरी - छातों को
तुम क्या समझो पापा यार!
शुभमस्तु !
15.03.2025●8.30प०मा०
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