रविवार, 23 मार्च 2025

कुहू-कुहू कोयल करे [ दोहा ]

 164/2025

     

[कोयल, कचनार,सेमल,कलिका, कामदेव]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                   सब में एक

कुहू-कुहू कोयल करे, आया मास  वसंत।

अमराई बौरा रही, कलियाँ  कलित अनंत।।

कोयल -वाणी जब सुनी,उठे हिये में हूक।

प्रोषितपतिका है दुखी,  करती है दो टूक।।


कांत कली कचनार की,झूम रहीं हर  डाल।

सुमन बैंजनी नाचते,बजा -बजा ज्यों  ताल।।

खाँसी कफ सूजन सभी,हरण करे कचनार।

कलिका की सब्जी  बना, खाएँ हो उपचार।।


पत्रहीन   सेमल   खड़ा ,जंगल के  एकांत।

लाल सुमन मुस्का रहे,  हृदय हुआ उद्भ्रांत।।

कटि पीड़ा या कब्ज हो,सेमल का उपचार।

भूला यह  जाता  नहीं ,  सुंदर  पर उपकार।।


हर कलिका में फूल का,होता प्रौढ़ विकास।

महक रही है डाल पर ,  बनी वृत्य अनुप्रास।।

यौवन मानो फूल है, कलिका वयस किशोर।

उषा  उदय  उपरांत ही, होता है शुभ  भोर।।


कामदेव करते   कृपा, होता सृष्टि  विकास।

खिलतीं कलियाँ देह में,अंग विकसते   खास।।

कामदेव ऋतुराज का,आया  फागुन   मास।

फूल हँसे कलियाँ खिलीं,तन में हुआ उजास।।


                    एक में सब

सेमल की कलिका खिली, कामदेव का रंग।

कोयल बोले   बाग  में, शुभ कचनार उमंग।।


शुभमस्तु !


19.03.2025●6.00आ०मा०

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