रविवार, 23 मार्च 2025

मन रँगने का उत्सव होली [गीत]

 162/2025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मन रँगने का उत्सव होली।


फागुन मास वसंत सुहाया

खिलते रंग हजार

टेसू पाटल सेमल सरसों

गेंदा नव कचनार

अमराई में उधर डाल पर

कोकिल काली बोली।


तन के रँग तो धुल जाते हैं

मन की अमित तरंग

मन खिलता तो तन भी महके

उठती काम उमंग

तन- मन में उन्माद वसंती

विजया की खा गोली।


लेकर   कर   में   चंदन रोली

रंगारंग गुलाल

महक उठे तन- मन अबीर में

तरुवर अधर कमाल

मन चंगा तो होली निशिदिन

हो ली हो ली हो ली।


शुभमस्तु!


18.03.2025●2.30आ०मा०

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