सोमवार, 17 मार्च 2025

खरबूजे की बारी है! [नवगीत]



 156/2025

     

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मूँगफली जी विदा हो गईं

खरबूजे की बारी है।


होली गई विदा हुरियारे

चना खेत में नाच रहा

अरहर रह-रह कटि मचकाए

गेहूँ खेत  कुलाँच रहा

गेंदा को गुलाब हड़काये

मह -मह गमला क्यारी है।


बूढ़े उस पीपल में आई

फिर से नई जवानी है

कामदेव ने अपनी धन्वा

फिर से घर -घर तानी है

पीपल नीम हँस रहे रह-रह

मदमाते  नर -नारी हैं।


तरबूजे ने हृदय चीर कर

लाल - लाल दर्शाया है

जामुन भरे जुनून जोश में

आम्र कुंज मुस्काया है

महुआ मह-मह महक रहा है

मन्मथ का अवतारी है।


लिपट गई हैं लता आम से

अंगूरी अंगूर सजे

पछुआ चले  बाग में रह-रह

लंगूरों के हुए मजे

कोल्हू चले बाग में निशिदिन

गुड़ भेली रसदारी है।


शुभमस्तु !


15.03.2025●5.30 प०मा०

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