156/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मूँगफली जी विदा हो गईं
खरबूजे की बारी है।
होली गई विदा हुरियारे
चना खेत में नाच रहा
अरहर रह-रह कटि मचकाए
गेहूँ खेत कुलाँच रहा
गेंदा को गुलाब हड़काये
मह -मह गमला क्यारी है।
बूढ़े उस पीपल में आई
फिर से नई जवानी है
कामदेव ने अपनी धन्वा
फिर से घर -घर तानी है
पीपल नीम हँस रहे रह-रह
मदमाते नर -नारी हैं।
तरबूजे ने हृदय चीर कर
लाल - लाल दर्शाया है
जामुन भरे जुनून जोश में
आम्र कुंज मुस्काया है
महुआ मह-मह महक रहा है
मन्मथ का अवतारी है।
लिपट गई हैं लता आम से
अंगूरी अंगूर सजे
पछुआ चले बाग में रह-रह
लंगूरों के हुए मजे
कोल्हू चले बाग में निशिदिन
गुड़ भेली रसदारी है।
शुभमस्तु !
15.03.2025●5.30 प०मा०
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