गुरुवार, 27 मार्च 2025

अपने को ही बदलो [ नवगीत ]

 181/2025

       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सबको नहीं बदलना संभव

अपने को ही  बदलो।


अच्छा दिखता नहीं कहीं भी

मीन मेख ही देखो

अपने को ही थोपो सब में

बिंब निजी आरेखो

मन में बिठा रखा जो कुछ भी

उसको ही तो उगलो।


माना पहलवान तुम भारी

क्यों हमसे टकराओ

अपने गीत गा रहे हैं हम

तुम अपने ही गाओ

क्यों हाथी से चूहा जूझे

दूर रहो जी सबलो!


जब पहाड़ के नीचे कोई

ऊँट कभी आ जाता

दाल भात का भाव खूब ही

पता उसे लग पाता

भाभी जी पर  गुस्सा भैया

हम पर यों क्यों उबलो!


27.03.2025●3.30प०मा०

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