174/2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कोई कुछ क्यों बोले? लगता है सबको साँप सूंघ गया है।साँप के सूँघने का ही इतना बड़ा असर है तो डँसने पर क्या होगा? सबने अपने- अपने साँप पाले हुए हैं।लेकिन वे अपने को डँसने को नहीं,दूसरों को डँसने के लिए ही हैं। कोई कुछ भी नहीं बोल पा रहा है। लगता है सबकी दुखती रग अचानक दब गई हैं। जो एक चीज का रहस्योद्घाटन 'उनमें' हुआ है;भय है कि कल उनकी चीज का भी न हो जाए ! तब क्या होगा ? इसलिए जो होना हो सो हो, चुप ही रहो। इसी में भलाई है। मैं न कहूँ तेरी ,तू न कहे मेरी।दुधारू काली भैंस पली हुई है, मत समझना इसे छेरी।
जहाँ -जहाँ आदमी है ,वहाँ -वहाँ 'वह' है। कर्म में,धर्म में,मर्म में,धन में, तन में, मन में, अमीर या निर्धन में,न्याय में अन्याय में,शादी या ब्याह में इस तरह व्याप्त है,जैसे कण - कण में ईश्वर। 'वह' तो खून में ऐसे प्रवहमान है ,जैसे आर बी सी या डब्लू बी सी। बात केवल अवसर की शुद्ध हवा की है, वह अनिवार्य है। 'अवसर की शुद्ध हवा' जिसे नहीं मिली ,बस वही 'उससे' निर्लिप्त है। यह 'वह' क्या है ?जिसे सब घृणा करते हैं , किन्तु चाहिए सबको। उचित ऑक्सीजन मिली नहीं कि 'वह' जाग्रत हुआ। सबको न्याय देने वाला भी जब उससे अछूता नहीं तो किसे दूध का धोया हुआ कहें?
इस देश में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं ,जिन पर 'उसकी' छाया का नाम तक लेना गुनाह है। मानो वे सीधे स्वर्ग से या सत लोक से अवतरित हुए हों। इसके विपरीत वास्तविकता यही है कि कोई- कोई आकंठ लीन है तो कहीं - कहीं छींटें ही पड़े हैं। अब मैं क्यों कहूँ कि कौन कितने पानी में हैं । देश में 'उसका' महाकुंभ चल रहा है जो महीने दो महीने का नहीं ;जीवन भर का है। पुण्यात्मा गोते लगा-लगा नहा रहे हैं। और पापी बैठे -बैठे लहरें गिन रहे हैं। अपने कर्म कोस रहे हैं। अपना -अपना भाग्य!
'यह' तो वह शुद्ध चीज है, जिसे कोई पत्नी पति के साथ करने से नहीं चूकती।जब खून में ही समाया हुआ है तो हर नर -नारी के जीवन का अहं तत्व भी है। बच्चों को इससे मुक्त माना जाता रहा है, किंतु शैशव पार करने के बाद जैसे ही वह आगे वह अपनी तिपहिया गाड़ी से उतरता है, सबके रंग में रँग जाता है। उसे इस रूप में देखकर कोई इसे अस्वाभाविक नहीं मानता,क्योंकि वह तो मानव मात्र के रक्त का अनिवार्य अंश है।पचास करोड़ के अनुदान में वस्तुतः बीस करोड़ ही साकार हो पाते हैं,शेष तीस करोड़ निराकार रूप में ही अन्तर्ध्यान हो लेते हैं। यही सच्ची ,अच्छी ,पक्की और बिना शक की 'सुव्यवस्था' है। बात फिर लौट फिर कर उसी बिंदु पर विश्राम पाती है, कि यह तो सबके एक समान खून के कणों का चमत्कार है।इस स्थल पर सभी होमो सेपियंस हैं, एक हैं, समान हैं।यदि भेद खुल गया तो तीर कमान हैं। देश को 'विश्व गुरू' होने के संभवतः इस महान गुण की भी परम अनिवार्यता होगी।
इस महत्त्वपूर्ण 'चीज' के अनेक पर्याय हो सकते हैं।जैसे गबन, उत्कोच,कमीशन,मिलावट, अपहरण,चौर्य ,राहजनी,सुविधा शुल्क इत्यादि। अब तो आप सब कुछ जान और समझ गए होंगे कि 'वह' क्या चीज है ,जो यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ सर्वत्र समान है। टीवी और अखबारों में इसके चर्चे ही चर्चे हैं।पर प्रत्यक्ष रूप से सबने अपने मुँह पर टेप आबद्ध किया हुआ है। बात बस इतनी सी है कि उनके पेट का पानी भी खौल उठा है कि कब क्या हो जाए! शुभमस्तु !
25.03.2025●1.15प०मा० ●●● [9:12 pm, 25/3/2025
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