144/2025
समांत : आले
पदांत :अपदांत
मात्राभार : 16
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अलग - अलग साँचे में ढाले।
जीव जगत में बड़े निराले।।
अपने - अपने ढँग से रहते।
रहन - सहन में सब मतवाले।।
नेता - चरित न जाने कोई।
रात - रात में बदले पाले।।
जनता आम बनी चुसती है।
बने मूढ़ जन भोले - भाले।।
सत्य बोलने पर बंधन है।
पड़े जुबाँ पर उनकी ताले।।
नेताओं के महल - दुमहले ।
उधर अँधेरे इधर उजाले।।
'शुभम्' त्रस्त है जनगण सारा।
भरे अँधेरे काले - काले।।
शुभमस्तु !
10.03.2025●7.30 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें