सोमवार, 17 मार्च 2025

नेता चरित न जाने कोई [सजल]

 144/2025


समांत        : आले

पदांत         :अपदांत

मात्राभार    : 16

मात्रा पतन  : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अलग  - अलग   साँचे  में  ढाले।

जीव   जगत  में   बड़े    निराले।।


 अपने - अपने    ढँग     से   रहते।

रहन - सहन में   सब     मतवाले।।


नेता   -  चरित    न     जाने   कोई।

रात  - रात  में      बदले      पाले।।


जनता   आम    बनी    चुसती   है।

बने   मूढ़      जन   भोले  - भाले।।


सत्य   बोलने     पर     बंधन    है।

पड़े  जुबाँ  पर     उनकी     ताले।।


नेताओं      के    महल  -  दुमहले ।

उधर   अँधेरे      इधर      उजाले।।


'शुभम्'   त्रस्त   है   जनगण  सारा।

भरे         अँधेरे     काले -  काले।।


शुभमस्तु !


10.03.2025●7.30 आ०मा०

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