सोमवार, 17 मार्च 2025

अबीर [ दोहा ]

 148/2025

                 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


होली  के    नव  रंग  में, उड़ता  लाल   अबीर।

गोरी के  मुख पर  मला,  रहा न  उर में    धीर।।

चंदन  रंग    अबीर   का,  अपना अद्भुत   रंग।

खेल   रहीं   नर -  नारियाँ,  उर में भरे   उमंग।।


कटि  में  पिचकारी  दबी,  कर  में छिपा अबीर।

श्याम  चले  रस रंग  को, नेंक नहीं उर    धीर।।

बने  हुरंगा   श्याम जी,  होली  का उर    चाव।

ले   अबीर  रँग  हाथ  में,चंचल मृदुल  स्वभाव।।


भर - भर    मुट्ठी    हाथ  में,   हुलसे गोपी- ग्वाल।

रोली     रंग      अबीर    से,    करते   हुए धमाल।।

डिमिक-डिमिक ढपली बजे, ढम- ढम ढोलक बोल।

बरसें   रंग   अबीर   के,   चहुँ  दिशि   मेघ  अमोल।।


फागुन   चैत्र     वसंत  का,  होली   नव   उल्लास।

उड़ता   लाल   अबीर  रँग, कलियाँ करतीं   हास।।

यमुना    तीर  अबीर   का, अनुपम शुभ     भंडार।

चलती   फगुआ   जोर से,  करते तरु     तकरार।।


राधा के  कर   रंग   है,  कर   में  श्याम  अबीर।

खेल रहे  हैं   ग्वाल   सब,  होली  हुए    अधीर।।

पीत   रंग   का    सोहता, सुमनों  पर  जो   रंग।

लगता   सजा  अबीर   है,देख  भ्रमर  दल   दंग।।


होली   में   मदमस्त  हैं,श्याम गोपियाँ   ग्वाल।

कोई    मले    अबीर     है, करते  रंग धमाल।।


शुभमस्तु !

12.03.2025●7.30 आ०मा०

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