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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जगती में भारत भू न्यारी।
सब देशों में सबसे प्यारी।।
उत्तर में है अद्रि हिमाचल।
बहती जिससे गंगा अविरल।।
त्याग तपस्या ध्येय हमारा।
फहरे गगन तिरंगा प्यारा।।
राम कृष्ण की धरती भारत।
करते जो दानव दल गारत।।
षड्ऋतुएँ हैं आतीं जातीं।
अपने रँग- रस नित बरसातीं।।
गेहूँ चना मटर सब होते।
कृषक यहाँ फल सब्जी बोते।।
सरयू यमुना गंगा बहतीं।
जीवन दान बहाकर रहतीं।।
ऋतु वसंत बौरे अमराई।
कोकिल की गूँजे मधुराई।।
विविध वेश बहु भाषा वाले।
नर- नारी सब बड़े निराले।।
संस्कृति विविध सभ्यता धारी।
भारत की महिमा है न्यारी।।
तुलसी सूर रहीम कबीरा।
कवि लेखक सर्जक बहु धीरा।।
वीर शिवाजी जीजाबाई।
कवियों ने नित महिमा गाई।।
विविध रंग में खेलें होली।
निकले हुरियारों की टोली।।
आता है जब पर्व दिवाली।
दीपों की बहु जलें प्रणाली।।
भारत देश महान हमारा।
हमें प्राण से है अति प्यारा।।
आन- मान के हम रखवाले।
हम भारत के पुत्र निराले।।
शुभमस्तु !
17.03.2025●9.00आ०मा०
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