सोमवार, 31 मार्च 2025

आज के युग का मैं भगवान [नवगीत]

 184/2025

  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समझ ले बात  सही  इंसान

आज के युग का मैं भगवान।


गर्वोन्नत हो मस्तक तेरा

खिंचवा फोटो संग

शान दिखाए औरों को तू

चढ़ा रखी ज्यों भंग

मैंने तुझे न अपना समझा

तू करता गुणगान।


भले पिघल जाए मंदिर का

पत्थर का भगवान

मुझको समझ न लेना सस्ता

इतना भी आसान

मेरे यहाँ सभी तुलते हैं

बीस पंसेरी धान।


तेरे जैसे कितने आते

लेकर छायाकार

संग खड़े खिंचवाते फोटो

दे कर  में उपहार

मुझे आम का ही रस लेना

करता मैं अभिमान।


30.03.2025●10.45 आ०मा०

                  ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...