150/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फागुन का प्रस्थान हो गया
कहाँ फ़ाग के रंग।
गेंदा खिले गुलाब महकते
शरमाती कचनार
सरसों ओढ़े पीत ओढ़नी
मटर बाँटती प्यार
गेहूँ गह-गह महुआ मह-मह
पीपल वट के संग।
सेमल सहमा मौन अकेला
बरसा रहा अबीर
अजहुँ न लौटे कन्त साँवरे
धरे न विरहिन धीर
सेज नागिनी डंसे रैन -दिन
उर में नहीं उमंग।
रूखी -सूखी पिचकारी में
रँग का पड़ा अकाल
सूखी उड़े चुनरिया गोरी
सँग का रहा सवाल
मन की मन में साध शेष है
देह चोलिका तंग।
शुभमस्तु !
13.03.2025●1.००प०मा०
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[2:59 pm, 13/3/2025] DR BHAGWAT SWAROOP: 151/2025
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