सोमवार, 17 मार्च 2025

कहाँ फाग के रंग! [नवगीत]



150/2025

     

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फागुन का प्रस्थान हो गया

कहाँ फ़ाग के रंग।


गेंदा खिले गुलाब महकते

शरमाती कचनार

सरसों ओढ़े पीत ओढ़नी 

मटर बाँटती प्यार

गेहूँ गह-गह महुआ मह-मह

पीपल वट के संग।


सेमल सहमा मौन अकेला

बरसा रहा अबीर

अजहुँ न लौटे कन्त साँवरे

धरे न विरहिन धीर

सेज नागिनी डंसे रैन -दिन

उर में नहीं उमंग।


रूखी -सूखी पिचकारी में

रँग का पड़ा अकाल

सूखी उड़े चुनरिया गोरी

सँग का रहा सवाल

मन की मन में साध शेष है

देह चोलिका तंग।


शुभमस्तु !


13.03.2025●1.००प०मा०

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[2:59 pm, 13/3/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 151/2025

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