183/2025
[साधना,उपासना,आराधना,प्रार्थना,याचना ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
सत्कर्मों की साधना, सदा साधती श्रेय।
मिले शुभद परिणाम ही, पूर्ण करे हर ध्येय।।
करे कठिन जो साधना, गहे उच्च वह लक्ष्य।
सत्त्व साध पथ में बढ़े, भखे न भक्ष्य-अभक्ष्य।।
प्रभु की करें उपासना, ध्यान रहे एकाग्र।
मन में शांति निवास हो,क्षणिक न हो मन व्यग्र।।
सभी उपासक एक से, कभी न होते मित्र।
उपासना के रंग भी,पृथक छिड़कते इत्र।।
करता फल की कामना,फल पर उसका ध्यान।
कैसे हो आराधना ,उड़े लक्ष्य पर ज्ञान।।
श्रेष्ठ वही आराधना, जहाँ समर्पण भाव।
प्रभु चरणों में सौंपिए, सहज हृदय का चाव।।
मन - मंदिर की प्रार्थना, करें हृदय से मौन।
और न कोई जानता, जतलाए भी कौन।।
द्रवित काष्ठ होता नहीं, करे प्रार्थना भक्त।
पाहन भी पिघले वहाँ, जहाँ हृदय अनुरक्त।।
दाता केवल ईश है , याचक सब संसार।
लक्ष्य याचना का वही, देता हर उपहार।।
द्वार - द्वार जाकर कभी, बनें न याचक आप।
करें नहीं वह याचना, बन जाए अभिशाप।।
एक में सब
आराधना उपासना, करें साधना नित्य।
सफल प्रार्थना याचना, का हो तब औचित्य।।
शुभमस्तु !
29.03.2025●6.00प०मा०
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