180/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
एक ही भगवान सबका
पर अलग इंसान,
आम तो बस आम
वीवीआईपी मेहमान
पिछले द्वार से दर्शन
मुद्रा की छुअन भरकम,
आदमी आदमी का भेद
व्यवस्था में बड़ा- सा छेद,
कुछ भी नहीं अन्याय
होती हो जहां अन्य आय!
अन्याय पर सब मौन
आँखों के समक्ष प्रत्यक्ष
प्रभु की सदा सम दृष्टि
धनिकों की अतुल धन वृष्टि
भक्ति के भूखे सदा भगवान
अन्यायी सदा इंसान,
खुला पिछला द्वार
लगा धन का बड़ा अंबार,
यही है धर्म या सद्धर्म?
कचोटता नहीं क्यों मर्म!
कण-कण में राम निवास
मंदिरों में करें उपहास,
कहीं जब मिल सकें जब राम
वीवीआईपी का क्या काम?
लगा रसना पर जब हराम
राम ही आय के स्रोत अभिराम,
सेवादार का उदर स्थूल
वीवीआईपी का दृढ़ मूल,
उसको चाहिए बस दाम
जय जय राम सीताराम।
शुभमस्तु!
27.03.2025 ●1.30प०मा०
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