165/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
लगे चैत्र- वैशाख ज्यों, अमराई में धूम।
मची हुई है भोर से, भ्रमर रहे मधु चूम।।
बौराए हैं आम के, सघन कुंज छतनार।
अमराई में गूँज है, भ्रमरों का अधिकार।।
सावन में अमराइयाँ, हलचल से भरपूर।
डाल -डाल झूले पड़े, गोरी मद में चूर।।
अमराई में खेलते, बालक वृंद अनेक।
सघन छाँव है आम की,कोलाहल अतिरेक।।
होली आई झूमते , तितली भ्रमर अनेक।
रौनक में अमराइयाँ,लिए सघन दल टेक।।
कुहू - कुहू कोकिल करे, अमराई की छाँव।
बाग महकते बौर से, चहक रहे हैं गाँव।।
ग्वाल प्रतीक्षा में खड़े, आएँ राधेश्याम।
अमराई की छाँव में,क्रीड़ा करें ललाम।।
आते ही ज्यों ही दिखे, भौंह नचाते श्याम।
अमराई खिल-खिल गई,गृह तज आईं वाम।।
गिरे टिकोरे आम के, अमराई के बीच।
बालाएँ प्रमुदित बड़ी,जो थीं खड़ीं नगीच।।
थके पथिक को भा रही,अमराई की छाँव।
भूभर में जिनके जले,बिना उपानह पाँव।।
अमराई में चू रहे, खटमिट्ठे फल आम।
बाला युवती भावतीं, ब्रजनारी सब वाम।।
शुभमस्तु!
19.03.2025● 11.00आ०मा०
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