172/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उत्सव धर्मी भारत प्यारा।
उर-उछाह उत्सव का गारा।।
जीवन की नीरसता हरता।
उत्सव नित नवीन शुभ करता।।
हर्ष हृदय - उल्लास जहाँ हो।
उत्सव का शुभ कर्म वहाँ हो।।
बालक वृद्ध युवा नर- नारी।
खिल जाती सबकी उर- क्यारी।।
घोर निराशा मिटे उदासी।
उत्सव से मानव शुभ शासी।।
साल - साल भर उत्सव आते।
मिलजुल कर नर - नारि मनाते।।
रंगों का शुभ उत्सव होली।
भर लाया गुलाल की झोली।।
कार्तिक मास दिवाली आती।
दीपमालिका दिये जलाती।।
भारत हुआ स्वतंत्र हमारा।
उत्सव वह स्वाधीन दुलारा।।
संविधान का उत्सव आता।
शुभ छब्बीस जनवरी भाता।।
जन्म- ब्याह के उत्सव कितने।
नित्य मनाते तजते फ़ितने।।
जीवन का हर दिन उत्सव हो।
करें वही जो सब शुभ नव-नव हो।।
उत्सव से गति जीवन लेता।
स्नेहन जब मिलता जन चेता।।
आओ जीवन - शुभता लाएँ।
हर क्षण उत्सव नित्य मनाएँ।।
शुभमस्तु !
24.03.2025●8.45आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें