गुरुवार, 6 मार्च 2025

सद्गुण बिना न मोल [दोहा]

 140/2025

         

[चारुता,चितचोर,अवगुंठन,अनुकूल,अशोक]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

             

                सब में एक

चटुल चारुता चर्म  की,सद्गुण बिना न मोल।

कृत्रिम  धी   से   हो   बनी,थोथा ढोलम पोल।।

नारी  की  तन - चारुता,  ज्यों माटी  की  देह।

कठपुतली-सी  नाचती , है  यथार्थ   में   खेह।।


गोपी    बोली   श्याम  से, हे  मोहन चितचोर।

शीश  तुम्हारे   सोहता,  मोरपंख ज्यों  भोर ।।

माखन  की  चोरी  करे, ज्यों  हो स्वर्णिम  भोर।

यशुदा   तेरा   लाड़ला,  बहुत बड़ा चितचोर।।


अवगुंठन में   रूप  की, जलती हुई   मशाल।

रूपसि   तेरे   रूप   का, चारों ओर धमाल।।

अवगुंठन में   झाँकता, रूपसि तेरा  रूप।

देख  भ्रमर  दल  मौन  हैं, भले काटती धूप।।


पति - पत्नी अनुकूल   तो, गेह बने  अनुकूल।

सुख  साधन  उर  में बसे, कभी न जाना  भूल।।

राजा  हो अनुकूल तो, जनता करे   विकास।

कर से  चूसे  देश   को, जन के  सँग उपहास।।


मौर्य  वंश   प्रख्यात   हैं,   राजा  वीर अशोक।

मुद्रा पर जिनकी  छपे, लाट  अमर बिन  रोक।।

जहाँ  न  कोई  शोक  हो,कहते उसे अशोक।

नहीं सहज  यह  भाव यों,जग में यही विलोक।।


                एक में सब

न  हो चारुता चित्त में, अवगुंठन  चितचोर।

उर अशोक अनुकूल हो, दृढ़ वैराग्य विभोर।।

शुभमस्तु !


04.03.2025●11.15प०मा०

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