179/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ताक रहे हैं अवसर सारे
अवसरवादी चोर।
धुला दूध से एक नहीं है
जारी सबकी खोज
चोरी करें भरें घर अपने
करें राजसी भोज
आय ऊपरी उत्तम सबसे
छपें नोट घनघोर।
बचा वहीं ईमान अंश भर
मिला न अवसर नेक
जिसकी पोल खुली अंदर की
पुलिस करे अभिषेक
सोए थे वे रात चैन से
हुआ और कुछ भोर।
पिछला द्वार बंद कर बैठा
पंडा करे किलोल
जो देता है नोट हजारों
देता है दर खोल
गुपचुप कर दर्शन प्रभु जी के
तनिक नहीं कर शोर।
शुभमस्तु !
27.03.2025●7.45आ०मा०
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