177/2025
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डॉ.गवत स्वरूप 'शुभम्'
कहा जाता है कि भगवान कण- कण में होते हैं, किन्तु इन पंडे- पुजारियों और महंतों की इसी प्रकार एकाधिकार सरकार चलती रही तो भगवान केवल वी आई पियों के होकर रहेंगे। किसी आम आदमी या गरीब आदमियों से भगवान का कोई दूर का भी सम्बन्ध नहीं रहेगा।भगवान की दृष्टि में उनका हर भक्त समान है।उसके साथ जाति,वर्ग,धनी,निर्धन, छोटा- बड़ा,वर्ण आदि का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।किन्तु इन तथाकथित सेवादारों,पंडे और पुजारियों ने अपने आर्थिक लाभ के लिए काला धन कमाने के लिए विशिष्ट ,अति विशिष्ट, सामान्य आदि श्रेणियों का विभाजन किया हुआ है,जिसके अनुसार वे भगवान के दर्शन पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं।
इस प्रतिबंध के अंतर्गत एक भक्त तेरह -चौदह घंटों तक कतारों में खड़ा रहता है और उधर जो भक्त उन्हें पाँच सौ,एक हजार ,पाँच हजार के नोट चुपके -चुपके गहा देते हैं उन्हें अविलंब ही पिछले 'चोर दरवाजे' से दर्शन करा दिए जाते हैं। इसमें भी दर्शन लाभ की श्रेणियाँ बनी हुई हैं ।जैसे जो भक्त पाँच सौ रुपये अदा करता है ,उसे सामा न्यतः दर्शन लाभ मिलता है ;किन्तु एक हजार रुपये में वह उन्हें पूजा के फूल और प्रसाद भी देता है।इसी प्रकार आमद बढ़ने के साथ -साथ दर्शन लाभ का पुण्य भी बढ़ा दिया जाता है।हो सकता है कि दस बीस हजार मिलने पर भगवान को वीवीआई पी के घर ही भगवान को भेज दें।अब भगवान भक्त के वश में नहीं इन पंडे- पुजारियों और महंतों के अधीन हैं। वे चाहें तो दर्शन कराएँ और न चाहें तो कोई दर्शन लाभ नहीं ले सकता।
नेता,मंत्री, धनाढ्य, अधिकारी, फिल्मी क्षेत्र के लोग, हीरो हीरोइन, नाचानिये, बड़े- बड़े व्यवसायी, पूँजीपति इन मंदिरों के मठाधीशों के वी आई पी और वी वी आई पी हैं। जो यदि चाहें तो भगवान को मंदिर से बुलाकर अपने रंग महलों में ही सपरिवार दर्शन कर सकते हैं। यह एक छत्र एकाधिकार स्प्ष्ट करता है,कि भगवान धन के अधीन हैं।ये तथाकथित पंडे -पुजारी अपने हिसाब से उन्हें नाच नचा रहे हैं। उधर देव दर्शन का दूसरा पहलू यह भी है कि जिनकी जेब में घर वापसी के लिए टिकट के पैसे भी नहीं हैं ,उन्हें तेरह - चौदहों घण्टे भीड़ में सड़ा दिया जाता है।देश के सभी बड़े -बड़े मंदिरों की इस दुर्व्यवस्था को दूर करना तो दूर सरकारों और प्रशासन के पास इसके लिए सोचने का भी समय नहीं है।
जनता की गाढ़ी कमाई का ट्रकों सोना चाँदी, पैसा प्रतिदिन इन मंदिरों में आस्था के नाम पर चढ़ाया जा रहा है कि व्यवस्था को सही करने के लिए इनके पास समय ही नहीं है। यदि अंध विश्वास और दुर्व्यवस्था के विरुद्ध लेखनी उठती है ,तो उसे विरोधी और धर्म विरुद्ध घोषित करने में देर नहीं की जाती।कुछ भी कहिए मत,बस सहते रहिए। अपना और आम जनता का शोषण देखते रहिए। धर्म की व्यवस्था पर बोलना और लिखना धर्म विरुद्ध है। मुँह पर टेप लगाए हुए सब मौन स्वीकृति देते रहिए।कौन नहीं जानता कि देश के बड़े -बड़े मंदिरों में क्या हो रहा है; किन्तु कोई कहने सुनने वाला नहीं है। प्रशासन पंगु हो चुका है। गरीब का शोषण हो रहा है। क्या यही धर्म है? क्या यही भगवान के प्रति समुचित व्यवस्था है? इस स्तर पर हमारी न्याय व्यवस्था भी मूक बनी हुई सब कुछ खुली आँखों से देख रही है। यह रुग्ण मानवीय मानसिकता सर्वथा निंदनीय और परिमार्जनीय है। दुनिया अंतरिक्ष के नए -नए रहस्यों का उद्घाटन कर रही है और विश्वगुरु कब्रें खोदने में मस्त है। मजहब और धर्म की लड़ाई लड़ने से फुर्सत मिले तब न कुछ विचार करे। अंधेर नगरी चौपट्ट राजा वाली स्थिति हो रही है। किंतु कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। मंदिरों की इस रिश्वतखोरी की दुर्व्यवस्था को देश ने सहज स्वीकार कर लिया है।
शुभमस्तु !
27.03.2025●5.00आ०मा०
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