155/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चरणों से सिर तक जा पहुँची
नई सभ्यता क्या कहने !
छूने का नाखून चरण के
कहलाता था प्रमन नमन
अब तो कमर नहीं झुकती है
आत्मलीन नर करे दमन
घुटनों तक छूने की सीमा
नई सभ्यता क्या कहने!
अब तो त्वरित तरक्की देखी
जांघों तक वह सतराया
आँखें झुकीं न लेशमात्र भी
शीश उठाकर तन पाया
गुरुजन से वह हाथ मिलाए
नई सभ्यता क्या कहने!
सूख गया आँखों का पानी
बदली हुई कहानी है
बेटा बाप बना पितुवर का
घरनी घर की रानी है
भेजे पिता- मातु वृद्धाश्रम
नई सभ्यता के क्या कहने!
शुभमस्तु !
15.03.2025● 3.30प०मा०
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