सोमवार, 17 मार्च 2025

होली [ चौपाई ]

 146/2025

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फागुन     लगा     आम     बौराया।

शुभ होली   ने     रँग     बरसाया।।

टेसू   और    गुलाब      खिले     हैं।

तितली    भौंरे     हिले-  मिले   हैं।।


होली     का    है     समा    निराला। 

मन  मादक     मोहित     मतवाला।।

डाली - डाली        कोकिल    बोली।

गाती    फाग      निराली     होली।।


पिचकारी    ले      बालक     आए।

धमाचौकड़ी      कर - कर    धाए।।

भीग  रही    भाभी     की     चोली।

कहते       तुमसे      खेलें    होली।।


डफ -   ढोलक  ने   धूम     मचाई।

नाच     रही    हैं     भाभी     ताई।।

देवर  से      हँस      भाभी   बोली।

खेलेंगीं     हम     तुमसे       होली।।


गेहूँ     चना     मटर     सँग    नाचे।

लहर   पवन   में    भरे     कुलाँचे।।

सेमल  सुमन       लाल    मनभाये।

सजे    डाल पर    सघन    सुहाए।।


घर - घर   गुझिया   पापड़  महके।

पिचकारी  ले     बालक    चहके।।

डिम-डिम  धम-धम   बजते बाजे।

होली     के       खुलते   दरवाजे।।


रंगों   का    शुभ     उत्सव    होली।

जीजा -  साली      करें    ठिठोली।।

पोतें  रँग    गुलाल     मुख    चंदन।

करें होलिका     का     अभिनंदन।।


शुभमस्तु!


10.03.2025● 8.30 आ०मा०

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