145/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अलग - अलग साँचे में ढाले।
जीव जगत में बड़े निराले।।
अपने - अपने ढँग से रहते,
रहन - सहन में सब मतवाले।
नेता - चरित न जाने कोई,
रात - रात में बदले पाले।
जनता आम बनी चुसती है,
बने मूढ़ जन भोले - भाले।
सत्य बोलने पर बंधन है,
पड़े जुबाँ पर उनकी ताले।
नेताओं के महल - दुमहले ,
उधर अँधेरे इधर उजाले।
'शुभम्' त्रस्त है जनगण सारा,
भरे अँधेरे काले - काले।
शुभमस्तु !
10.03.2025●7.30 आ०मा०
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