सोमवार, 17 मार्च 2025

अलग-अलग साँचे में ढाले [गीतिका]

 145/2025

   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अलग  - अलग    साँचे  में   ढाले।

जीव  जगत   में     बड़े    निराले।।


 अपने - अपने    ढँग     से   रहते,

रहन - सहन में   सब     मतवाले।


नेता   -  चरित    न     जाने   कोई,

रात  - रात  में      बदले      पाले।


जनता   आम    बनी    चुसती   है,

बने   मूढ़      जन   भोले  - भाले।


सत्य   बोलने     पर     बंधन    है,

पड़े  जुबाँ  पर     उनकी     ताले।


नेताओं      के    महल  -  दुमहले ,

उधर   अँधेरे      इधर      उजाले।


'शुभम्'   त्रस्त   है   जनगण  सारा,

भरे         अँधेरे     काले -  काले।


शुभमस्तु !


10.03.2025●7.30 आ०मा०

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