मंगलवार, 4 मार्च 2025

सच कह दूँ तो [ नवगीत ]

 135/2025

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सच कह दूँ तो बुरा मानते

ये दुनिया के लोग।


झूठों की टकसाल खुली है

भरे हुए अखबार

टीवी पर झूठों की पूजा

जन पर वही सवार

निकल गया जो सत्य जीभ से

बने सत्य को रोग।


माला शॉल प्रतीक चिह्न का

अच्छा है व्यापार

थोड़ा  हाथ बढ़ाओ तुम भी

बन जाएँ वे यार

कहलाओगे काव्य धुरंधर

बिना किसी तप योग।


कुंभ  नहाए  धर्मी-कर्मी

शेष रहे जो लोग

किया न होगा पुण्य एक भी

लगे न उसके जोग

अब पछताने से क्या होगा

करो नहीं अब सोग।


शुभमस्तु !


03.03.2025●12.45 प०मा०

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