सोमवार, 17 मार्च 2025

हुड़दंग [सोरठा]

 149/2025

               


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बचा भक्त प्रह्लाद,बुआ होलिका ही जली।

दर्शक पाते  स्वाद,डफ ढोलक हुड़दंग में।।

कीचड़ में कुछ लीन, कोई  खेले  रेत  से।

जन के वसन नवीन,फाड़ दिए हुड़दंग में।।


देखें  आन न मान, सीमा क्या हुड़दंग  की!

अपनी  ही  दें तान,होली  बुरा न मानना।।

कर गोपी  से  रार, ग्वाल-बाल  हुड़दंग में।

रखते  नहीं  उधार, चूनर   रँगते   रंग  से।।


रँगे श्याम   के  गाल, ब्रजनारी  हुड़दंग   में।

चंदन टीका भाल,काजल बिंदिया भी सजा।।

मत  सीमा  को  तोड़,  होली   के हुड़दंग  में।

डोर  नेह   की   जोड़ , बैर  नहीं  तू ठानना।।


तजना  नहीं  विवेक,भरसक होली खेलना।

कर्म   करें  सब  नेक, मर्यादा सबकी  रखें।।

होली में   हुड़दंग,   नहीं  बड़ों  को सोहता।

बरसे   नेहिल  रंग,  माथे  मलें गुलाल  भी।।


उधर मचा हुड़दंग,धम-धम डफ ढोलक करें।

बरसें   नौ - नौ  रंग,  लठामार  होली   हुई।।

ब्रजवनिता    बलदेव,   चलीं  हुरंगा खेलने।

जायज  सभी  फरेव, करतीं  जो हुड़दंग  वे।।


मचा     रखी   है   रार,  होली के हुड़दंग  ने।

मानें  युवा न   हार, छप्पर - छानी  दें   जला।।

शुभमस्तु !


13.03.2025●10.45आ०मा०

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