गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

भू माँ का ऋण 🌏 [अतुकान्तिका ] २२ अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस पर:




◆◆◆◆◆◆◆ ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🌏 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

बीत गए  जब नौ मास,

लिया बाहर आकर तब श्वास,

किया जब भू  माँ पर विश्वास,

खिला जननी पितुवर का हास।


दे दिया जननि ने जन्म,

 किया  जन्मभूमि ने

महत  शुभ कर्म,

निज आँचल में 

धीरे से  उठा लिया,

आहत होने से शिशु को

 भू माँ  ने बचा लिया।


 भू माँ का खाकर अन्न,

देह पर वसन,

उदर में असन ,

विकसा नित तन मन,

बन मत नारी- नर 

इतना भी कृपण,

उसे कर नित उठ

प्रातः नमन,

करेगी भू माँ

तापों का शमन।


मानव हित

उपजाए अन्न ,दूध ,फल

करती माँ रक्षा प्रतिपल,

हजारों शाक,सब्जियां, फूल,

न उसको भूल,

धरती माँ का कण-कण

पावन धूल,

लोटकर बड़ा हुआ ,

रेंगा पिपीलिकावत,

लड़खड़ाया गिरता पड़ता

आगे बढ़ता,

मंजिल पर चढ़ता,

क्यों उसको भूला?


खोदे गड्ढे गहरे कूप,

बदलता रहा धरा के रूप,

बनाए घर आवास,

उगे पौधे हरित नव घास,

नहीं बोली चिल्लाई,

देखा उसका धीरज ?

मौन सहकर सब कुछ

नहीं दहलाई,

बन जा उस

भू माँ का सुपूत,

माँ की कृतज्ञता को

तू कैसे लेगा कूत !


सुलाती वही अंक में

 होता जब तू 

अंतिम निद्रा लीन,

पंच महाभूतों में

अणु - अणु  करती विकीर्ण,

यही वह है भू माँ,

जिसने पहली

बार 'शुभम' तव

आनन चूमा।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०४.२०२१◆ ३.४५पत नम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...