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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जहाँ बुद्धि है,
वहीं विचार है,
विचारों का जाल है,
विचारों का ताना बाना है,
जिसके रूप नाना हैं।
जहाँ विचार है,
वहीं संसार है,
विचारों से ही संसार है,
विचारों का कम होना,
संसार से दूर होना ,
समेटता हुआ बिछौना,
मानव का बनता हुआ सोना,
शनैः - शनैः अंतर दीप का
प्रकाशित होना।
निर्विचार ही ध्यान है,
वही तो सच्चा ज्ञान है,
जहाँ बुद्धि है
वहाँ विचार ही होना है,
अपने आप अपने लिए
संसार -शूल बोना है।
जागते सोते,
चलते -फिरते,
खाते पीते ,
रहते जीते,
कभी नहीं विचारों से रीते,
संसार है तो बुद्धि भी होगी,
अज्ञान और अज्ञानी,
बुद्धि के वाहन हैं,
ज्ञान और ज्ञानी
बुद्धत्व के धन हैं।
बुद्धत्व ही
निर्विचार की क्षमता है,
जिसकी नहीं कोई
समता है,
घनावृत आकाश ही
बुध्दि है,
घन रहित स्वच्छ आकाश
बुद्धत्व !
मानव जीवन का सत्त्व,
बुद्धि: मिट्टी में पड़ा हुआ स्वर्ण,
बुद्धत्त्व: तपा हुआ स्वर्ण,
बुद्धि की शुद्धि ही
बुद्वत्त्व,
जिसका नहीं समझ पाता
ये मानव कभी महत्त्व,
समझता रहा मिट्टी को सोना,
नहीं चाहा जिसे कभी धोना,
ध्यान का अभाव ही संसार,
जैसे हो बुध्दि का अपस्मार,
बुद्धत्त्व से बहुत दूर,
सांसारिक अहं में चकनाचूर!
मानव की चाहत
बस धूल! धूल!! धूल!!!
सोने की विवेक के परदे पर
पड़ी धूल,
ममता ,कामना और
अहंकार का संसार,
त्यागकर सुमन
ग्रहण करता है
'शुभम' मानव खार।
🪴 शुभमस्तु !
२९.०४.२०२१◆७.००पतनम मार्तण्डस्य।
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