मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

ग़ज़ल 🌴


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बहर:  2122  1212   22

काफ़िया: अर।

रदीफ़:  नहीं देखा।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आग     देखी       कहर    नहीं   देखा।

नाग     देखा      ज़हर      नहीं  देखा।।


बोल   ही   बोल    में   लुभाता     जो,

ख़्वाब  में    वह     बशर  नहीं  देखा।


एक    नेता      कभी    मसीहा  क्या ?   

झाम      बोता      इधर  नहीं  देखा?


घोष      गूँजा      उसे     सभी  मानें,

लोग     सुनते    असर    नहीं   देखा।


दोष      देना        भला    नहीं   होता,

पापियों    को    अमर      नहीं    देखा।


आ      चुके      जो     चले    गए  सारे,

आप     अपना      चँवर   नहीं   देखा।


झूठ       आता      कभी     बना   नेता ,

भीत      ऐसा      कहर     नहीं    देखा।


🪴 शुभमस्तु !


२०.०४.२०२१◆४.३० पतनम मार्तण्डस्य।


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