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बहर: 2122 1212 22
काफ़िया: अर।
रदीफ़: नहीं देखा।
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आग देखी कहर नहीं देखा।
नाग देखा ज़हर नहीं देखा।।
बोल ही बोल में लुभाता जो,
ख़्वाब में वह बशर नहीं देखा।
एक नेता कभी मसीहा क्या ?
झाम बोता इधर नहीं देखा?
घोष गूँजा उसे सभी मानें,
लोग सुनते असर नहीं देखा।
दोष देना भला नहीं होता,
पापियों को अमर नहीं देखा।
आ चुके जो चले गए सारे,
आप अपना चँवर नहीं देखा।
झूठ आता कभी बना नेता ,
भीत ऐसा कहर नहीं देखा।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०४.२०२१◆४.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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