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✍️ लेखक ©
🥝 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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देश में कोरोना - वायरस के फैलाव की बात से कौन भिज्ञ नहीं है? इस फ़ैलाव के लिए बहुत कुछ अर्थों में मानव स्वयं उत्तरदायी है।इस प्रश्न पर विचार किया जाना अति आवश्यक हो गया है। कोरोना-फ़ैलाव के कारणों में मेरी दृष्टि में एक प्रमुख कारण है , व्यक्ति की 'अपनी लापरवाही'। रोगाणु के बचाव के लिए मास्क का प्रयोग ,अन्य व्यक्ति से निश्चित दूरी का अनुपालन,कुछ विशेष प्रकार की क्रियाएँ, कुछ विशेष खानपान और आहार -विहार से भी बहुत कुछ बचाव सम्भव है। पर अपने देश का आदमी अपने प्रति ही इतना अधिक गैर जिम्मेदार है कि वह जानते हुए भी इन सब बातों की अनदेखी करता है।
गाँव के अधिकांश लोगों से यदि मास्क आदि का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है ,तो वह अपनी हेकड़ी में दम भरते हुए यही कहता है कि हमें कोरोना कैसे हो सकता है। हम मेहनत करते हैं।पसीना बहाते हैं। हम मजबूत हैं। शहर के लोगों की तरह कमजोर नहीं हैं हम लोग।हमें क्यों होगा कोरोना ? इसी प्रकार की बे सिर पैर की बातें उन्हें सुझाव दिए जाने पर सुनने को मिलती हैं।यही कारण है कि वे टीकाकरण में भी विश्वास नहीं करते।
मूर्खता की हदें तो तब पार हो जाती हैं ,जब देश-प्रदेश के तथाकथित बड़े - बड़े नेता जी नियम कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए देखे जाते हैं।उनका मानना है कि वर्तमान सत्ता दल के टीके को हम क्यों लगवाएँ?जब हमारी सरकार बनेगी ,तब लगवाएंगे।हो सकता है कि इस सरकार की कोई चालबाजी हो ,जो हमें मारने के लिए ईजाद की गई हो।इस प्रकार की सोच के सभी लोगों की बुद्धि पर तरस आता है! इनकी बुद्धि की बलिहारी ही है।ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि प्रदान करे।
' डंडे का डर' भी आंशिक समाधान हो सकता है।अभी एक सप्ताह पहले मुझे एक प्राइवेट वाहन से जिला मुख्यालय जाना पड़ा।मुझे छोड़कर उस वाहन में कोई भी मास्क नहीं लगाए हुए था। कुछ देर चलने के बाद मुझसे रहा नहीं गया। मैंने वाहन - चालक से ही कहा :तुम दिनभर वाहन चलाते हो। हर प्रकार का व्यक्ति इसमें आता - जाता है। तुम्हें अपने बचाव की भी चिंता नहीं है?तुम्हें तो मास्क लगाना ही चाहिए।उसने मौन स्वीकृति दी और हाइवे पर थोड़ा आगे चलने के बाद रास्ते में मिले एक खोखा- दूकान से एक पाँच रुपये का मास्क खरीद कर लगा लिया। यह मास्क मेरे कहने से लगाया हो ,ऐसा भी नहीं है। यह मास्क डंडा के डर से अगले चौराहे पर होने वाले चालान से बचने के लिए लगाया गया था। यह देखकर मेरे पड़ौस में रखे ख़रबूज़े ने भी बैग से मास्क लगाकर अपना मुख -नाक आच्छादन कर लिया।शेष सवारियां निर्विकार भाव से यात्रा करती रहीं।
शासन और प्रशासन के बार-बार के निर्देशों औऱ कड़ाइयों के बावजूद सड़क, गली ,बाज़ार ,दुकान ,यात्रा ,मेला, कार्यालयों में बरती जा रही उदासीनता अंततः कहाँ ले जाएगी! जब सरकार ने निःशुल्क टीकाकरण प्रारम्भ कर दिया तो हमें अपने प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों और सरकारों का कृतज्ञ होना चाहिए न कि उसमें मीन - मेख निकालनी चाहिए।
कुछ ऐसे भी अति बुद्धिमान लोग भी इस देश में निवास करते हैं , जो कोरोना को जाति ,मज़हब औऱ धर्म से जोड़कर देख रहे हैं। कुछ लोगों की आँखों में परमात्मा सुअर का बाल देकर ही पैदा करता है। जिनका कर्म ही है कि हर अच्छी बात में अपनी "अति -बुद्धिमत्ता "? का प्रमाण दें। सो वे ही रहे हैं।
'जो आया जेहि काज सों तासे और न होय।
बोनों ही है विष जिन्हें वे विष ही नित बोय।'
मानव की दूषित सोच औऱ उसका दुष्प्रचार कोरोना प्रसार में विशेष सहायक सिद्ध हो रहा है। शासन नियम बना सकता है ,पर उनका अनुपालन तो हमें ही करना होगा।इस भयंकर रोग का हस्र भी जानते हैं सब, फिर भी इतनी भयंकर उदासीनता औऱ अनदेखी निंदनीय है।ईश्वर ऐसों को सद्बुद्धि प्रदान करे औऱ और मेरे देशवासियों की इस महामारी से रक्षा करे।
🪴 शुभमस्तु !
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