शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

मेला : मतमंगों का 🍲 [ दोहा ]

  

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

मतमंगे  दर  - दर खड़े, अपनी   माँगें खैर।

नहीं किसी  से मित्रता,  नहीं किसी से बैर।।


कुरसी  की  आदत पड़ी,मरे न  मेरा  मोह।

मतमंगा  कहने  लगा, हुआ फूलकर गोह।।


एक और अवसर मिले,मैं फ़िर आया द्वार।

हाथ  जोड़ वंदन  करे,ये मतमंगा  -  वार।।


आ  जाना  चौपाल पर ,मतमंगे  की  टेर।

मुर्गा, दारू  सब  मिले, चुनना दादा फेर।।


सड़क,  खड़ंजा गाँव में,होना है  इस  बार।

वादा   मतमंगा  करे,  होगा ग्राम -  सुधार।।


जितना  चाहो खा सको,खा लो पूआ खीर।

मतमंगे के भोज से,खुली ग्राम - तक़दीर।।


खूँदेगा  जो  खांड को,खाना है अनिवार्य।

मतमंगा  जेता बना,आवंटित बहु  कार्य।।


दाम  उदर  में जब गये,फूल गए  तन   पेट।

मतमंगे  की  जीत  से,खुले प्रगति के गेट।।


साठा  से  पाठा बना,मतमंगा मत   जीत।

वादा है इस बार भी,भूलो 'शुभम' अतीत।।


मतमंगे   के  साथ  में,चलते चमचे   चार।

पर्चे  चस्पा  कर   रहे, भले संहिता भार।।


मतमंगे   की   भीड़  में,कुछ छूते  हैं   पैर।

मतमंगा तनकर खड़ा,मन में हो ज्यों बैर।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०४.२०२१◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...