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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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फ़िर चुनाव आ गया।
गाँव - गाँव छा गया।।
दावतों पर दावतें,
दारू मुर्गा भा गया।
रंजिशें बोता हुआ,
आम जन को खा गया।
तोड़ने की साजिशें,
गज़ब ऐसा ढा गया।
छू गया घुटने कोई,
द्वार पर जो आ गया।
सबसे बोला झूठ मैं,
उसने सोचा पा गया।
गीत मेरी शान में,
मतमंगा कोई गा गया।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०४.२०२१◆५.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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