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✍️ शब्दकार ©
🤓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जगत और परमात्मा, एक रूप दो नाम।
आँखों पर चश्मे चढ़े,दिखता जगत सकाम।।
जैसा भी दृष्टा यहाँ, वैसी उसकी दृष्टि।
दिखती उसके नयन से,उसको वैसी सृष्टि।।
दुनिया में विश्वास है, मात्र साहसिक शक्ति।
चश्मों से दिखता जगत,नग्न नयन से भक्ति
राम - राम रसना रटे, पर खाली उर - धाम।
ऊपर - ऊपर राम हैं,भीतर काम ललाम।।
चश्मे पर चश्मे चढ़े, कैसे दीखे राम ।
जाति, वर्ण या धर्म के,सारा जगत सकाम।।
औरों की वाणी वचन,भाषा भजन उधार।
अपनी आँखें खोल ले,ढोता क्यों है भार।।
नर प्रक्षेपण यंत्र-सा, फेंक रहा है ज्ञान।
उर में हिंसा वासना,छिपी वसन में म्यान।।
ग़लत दृष्टि तेरी 'शुभम',दिखता बस संसार।
वही ईश परमात्मा, अपनी दृष्टि सुधार।।
कण-कण में प्रभुवास है,कण-कण में हैं राम
चकाचौंध पाषाण की, बनवाती है धाम।।
मानव अपने नाश का,स्वयं एक हथियार।
मानवता पीछे चले, आगे कर तलवार।।
चश्मों की संख्या बढ़ी,दिन पर दिन बढ़वार।
घण्टे, थाली बज रही ,जगत बना बाज़ार।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०४.२०२१◆८.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
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