गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

रसना 🍎 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

रसना रस लेती रही,था नर को  सब  ज्ञान।

मारा  इस  बेदर्द ने,बना अस्थि  का  श्वान।।

बना अस्थि का श्वान, भैंस बकरे सब खाए।

मुर्गी , मुर्गा, अंड,  सभी पर नहीं   अघाए।।

जागा नहीं  विवेक,न बंधन अपने    कसना।

'शुभम'लालची गीध, हुई मानव की रसना।।


                       -2-

रसना के सँग और भी,नौ नर तन  के द्वार।

मानव नौ का दास है,सब विधि वह लाचार।

सब विधि वह लाचार,एक क्षण रोक न कोई।

मन  की  है  सरकार,दहकती धी बटलोई।।

सबके अपने  रंग, सभी का नर  को  डसना।

'शुभम'बनाता क्षीण,नहीं कम केवल रसना।।


                        -3-

रसना   रस  में   लीन  है,ले जीवों  के  प्राण।

चटखारे ले खा रही,करता नर निज त्राण।।

करता नर निज त्राण, मौत का जश्न मनाता।

कट्टीघर  में  काट,माँस गौ माँ  का  खाता।।

बचे न बिच्छू साँप, भेड़ बकरा सब भखना।

'शुभम' धर्म की डींग,हाँकती दूषित रसना।।


                       -4-

रसना  मुख भीतर घुसी, बाहर टीका माल।

चीवर पीला देह पर,देखो मनुज - कमाल।।

देखो  मनुज- कमाल, स्वाद अंडे में  लेता।

पशु- पक्षी का माँस, खा रहा मानव-जेता।।

घट जाता जब पूर्ण,भूल जाता नर हँसना।

टाल रहा निज दोष,'शुभं' कब देखी रसना?


                        -5-

रसना  के रस के लिए,रहा न कुछ  भी शेष।

चमगादड़,  कुत्ते, गधे,बकरी, बकरा,  मेष।।

बकरी, बकरा, मेष,मछलियाँ,मेढक कछुआ।

संग सुरा का स्वाद,न जानी उनकी  बदुआ।।

आया भीत  कुकाल,मौत का ऐसा   ग्रसना।

देखा सुना  न रोग,'शुभम' ऐसी नर  रसना।।


🪴शुभमस्तु !


२९.०४.२०२१◆११.४५पतनम मार्तण्डस्य।

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