मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

यही कहती माँ धरती🌏 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🌎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                       -1-

धरती के  बदहाल    का, कैसे करें    बखान।

त्राहि-त्राहि मानव करे,पीड़ित सकल जहान।

पीड़ित सकल जहान,उड़ी हर बदन   हवाई।

कोरोना  का  रोग,  नहीं  कुछ बनी   दवाई।।

'शुभम' बढ़  रहा  पाप,पाप से जनता मरती।

कैसे  मिले  निजात ,बोझ से मरती  धरती।।


                       -2-

धरती  पर  निज कर्म का, भोक्ता है इंसान।

दोष अन्य पर मढ़ रहा, चढ़ा नित्य परवान।।

चढ़ा  नित्य  परवान,बीज शूलों के     बोता।

है  फूलों  की आस,नहीं मिलने पर     रोता।।

अहंकार   में  चूर ,  बुद्धि  घूरे पर    चरती।

गढ़ा   खोदता रोज़,मौन मरती  माँ  धरती।।


                       -3-

धरती से दोहन किया, जल जीवन का प्राण।

मूढ़  बुद्धि  जाना नहीं,माँ करती   है त्राण।।

माँ  करती  है  त्राण, उसी में विष  बोता है।

अधिक उपज के लोभ,सुखी निद्रा सोता है।

'शुभम'सत्य है बात,तोंद नर की कब भरती?

विष का विष उत्पाद,दिया करती माँ धरती।।


                       -4-

धरती पर अब लौट आ,ए!जड़बुद्धि अजान।

बहुत हवा में उड़ लिया,हुआ न  कोई भान।।

हुआ न  कोई  भान, तामसी जीवन  जीता।

खाता  मूसक कीट,लगाता स्वयं     पलीता।।

'शुभम' न छोड़े साँप,गधे बिल्ली नित मरती।

चमगादड़ का सूप, पिया मरती माँ  धरती।।


                       -5-

धरती  धारण  कर  रही,मानव तेरा    भार।

सता - सता कर मारता,करता नित्य प्रहार।।

करता  नित्य प्रहार,मौन माँ धरती   सहती।

होते भीषण घाव,नहीं मुख से कुछ कहती।।

'शुभम'सुधर जाआज,छोड़ दे उसको परती।

पर मत बो विष शूल,यही कहती माँ धरती।।


🪴 शुभमस्तु !


२०.०४.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।



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