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✍️ लेखक ©
🏔️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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हम 51 प्रोफ़ेसर्स के 'रोबर स्काउट लीडर' के प्राधिक्षण की समयावधि आधी से अधिक हो चुकी थी। तभी कुछ साथियों के द्वारा एक नई जानकारी मिली कि प्रशिक्षण -स्थल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्याही देवी (काली माई) का एक प्रसिद्ध मंदिर है।यह मंदिर बहुत ऊँचाई पर चढ़ने के बाद है।यदि समय रहते वहाँ स्याही देवी के दर्शन कर लिए जाएँ तो उचित रहेगा। इसके लिए यदि प्रशिक्षकों से अनुमति माँगी जायेगी ,तो वह मिलने वाली नहीं है।इसलिए हम पाँच -छः साथियों ने वहाँ बिना अनुमति लिए ही अगले दिन जाने की योजना को गोपनीय रूप से तैयार किया।
अगले ही दिन सुबह से ही बिना किसी को सूचित किए हुए ही स्याही देवी दर्शन की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। पहाड़ी मार्गों पर सहायक के रूप में अपने -अपने हाथ में एक -एक लाठी ले ली औऱ चल पड़े।सभी साथियों में एक साथी पर्वतीय क्षेत्र के थे ,जिन्हें रास्ते आदि की पूरी जानकारी भी थी। सम्भव है कि वह पहले कभी स्याही देवी के दर्शन कर चुके भी हों।
प्रक्षिक्षण -स्थल से एकाध किलोमीटर चलने के बाद मंदिर की ओर चढ़ाई का मार्ग शुरू होता था।लाठियों को हाथ में थामे हुए हम सभी तेज -तेज कदमों से सीढ़ी नुमा रास्तों पर चढ़ने लगे। जल्दी जाने की यह वजह भी थी कि कक्षा शुरू होने तक वापस आ जाएँ ।चढ़ने में पहले तो बहुत जोश रहा ,किन्तु शीघ्र ही हमारा जोश ठंडा पड़ने लगा। हममें से एक साथी ,जो पर्वतीय क्षेत्र के थे , वह तो बिना लाठी की मदद के बिना थके आगे- आगे दौड़ते से चले जा रहे थे। हम अन्य सभी लोगों की साँस फूलने लगी। कभी कोई थोड़ा रुक जाता , फिर हाँफते हुए चढ़ने लगता।
अंततः लगभग एक -डेढ़ घण्टे की कड़ी मसक्कत के बाद हम सभी अपने गंतव्य स्थल स्याही -देवी मंदिर पर पहुँच चुके थे। वहाँ का मनोरम प्राकृतिक दृश्य देखते ही हमारी सारी थकावट दूर हो चुकी थी। उस बड़ी -सी पहाड़ी पर समतल स्थान पर एक मध्यम आकार का मंदिर सुशोभित हो रहा था। मंदिर के बाहर स्थित एक विशाल पीपल के वृक्ष पर हजारों पीतल के छोटे -बड़े घण्टे लटके हुए थे औऱ हजारों की संख्या में झंडे-झंडियाँ वहाँ के वातावरण को धार्मिक बना रही थीं।
मंदिर के मुख्य द्वार के बाहर ही एक विशेष प्रकार का पक्का कुंड बना हुआ था।जिस पर कुछ रक्त भी पड़ा हुआ था, जो उस समय सूखा हुआ था औऱ लगभग काला -सा हो चुका था।पता करने पर बताया गया कि यहाँ पर कभी -कभी बकरे की बलि दी जाती है। मंदिर के बाहर का वातावरण सुरम्य हरियाली से भरा हुआ था। मंदिर के नीचे की ओर सेव के बगीचे थे ,जिन पर सेव लगे हुए थे,जो कच्चे होने के कारण हरे दिखाई दे रहे थे। वहाँ के पुजारी ने यह भी बताया कि यहाँ पर रात में कभी- कभी देवी माँ के वाहन शेर महाराज भी दर्शन देते हैं।
इसी प्रकार की बहुत सारी जानकारी करने के बाद अब स्याही देवी माँ के दर्शन करने का सुअवसर आ गया था। मंदिर के लगभग ढाई फीट चौड़े औऱ साढ़े तीन फीट ऊँचे गेट के अंदर एक पतली- सी गुफानुमा गैलरी में लगभग 20 -25 फीट आगे बढ़ने के बाद माँ की पवित्र प्रतिमा के दर्शन किए। चरण -स्पर्श के बाद साथ में लाए हुए कैमरे से माँ के कुछ फोटो भी खींचे गए।लगभग आधा घण्टे मंदिर परिसर में रहने के बाद अपने केंद्र पर लौटने की तैयारी कर दी गई।
पर्वतीय चौड़ी सीढ़ीनुमा पगडंडियों पर आने में जितना श्रम करना पड़ा ,उतना श्रम लौटते समय नहीं हुआ और हम सटासट सीढियां उतरते हुए केंद्र पर डरते -डरते जा पहुँचे। मन में यही भय था कि जाते ही डाँट पड़ेगी। देखा पूर्ववत कक्षा पूर्ववत चल रही थी । अंदर प्रवेश करने की अनुमति प्राप्त की और चुपचाप जाकर यथास्थान बैठ गए। कोई डाँट नहीं पड़ी। जब हम वहाँ से चले गए होंगे ,तो अन्य साथियों ने बता दिया होगा।
इस प्रकार प्राशिक्षण अवधि में नियमोल्लंघन करते हुए माँ स्याही देवी के दर्शन किए। 10 जून को प्रशिक्षण पूर्ण करके अपने प्रमाण पत्र प्राप्त कर सभी साथी अपने -अपने घर के लिए यथासमय प्रस्थान कर गए।निश्चय ही हम सबके लिए यह प्रशिक्षण एक रोमांचक औसाहसिक यात्रा से कम महत्त्व का नहीं था। आज भी उस प्रशिक्षण की सुनहरी स्मृतियाँ मन के किसी कोने में सुरक्षित हैं।
माँ स्याही देवी सबका कल्याण करें।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०४.२०२१ ◆६.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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