शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

स्वदेह सेवा: स्वदेश सेवा 👏 [ सायली ]

 

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✍️ शब्दकार ©


 🫐 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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झड़ी 

लगी है

बरसाती मौसम में

उग आए 

कुकुरमुत्ते।


बजने 

लगे हैं

ढोल गाँव - गाँव

चले मतमंगे

पाँव।


टर्राते

दादुर दल

फोड़ रहे कान

कुरसी है

निशान।


मुर्गा,

मछली ,दारू,

खुला खजाना कारू,

मुफ़्त की 

मारूँ।


आज

चरण दास

हो गए पास,

आता कौन

पास?


मुझे,

मेरे बेटे,

मेरी पत्नी को,

नहीं किसी

को।


लालच

कमाने का,

नहीं सेवा भाव,

तिजोरी सजाने

चला।


चरण 

पहला -पहला,

नेतागिरी चमकाने का,

गाँव की 

सरकार।


खुश 

प्रधान पति,

मिल गई सद्गति,

हज़ार नहीं

करोड़पति।


नीयत 

खोटी है,

चुपड़ी रोटी है,

मतमंगे के

मन।


सेवा

स्वदेह की,

देश सेवा ही,

हम भी

देशवासी।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०४.२०२१◆१०.०० आरोहणम मार्तण्डस्य।


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