गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

मतमंगे 🍷🪑 [अतुकान्तिका ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

हर हर गंगे !

आप सब होंगे भले चंगे,

आ गए आपके द्वार पर

फिर पाँच साल बाद,

वही  वही  'मतमंगे' ।


आपके चरणों के दास हैं हम,

चाहे लीजिए मुर्गा 

साथ में ठर्रा या रम!

हाज़िर हैं आपकी सेवा में

कमी नहीं होगी किसी मेवा में!

चाहे  घोटिये शुद्ध शाकाहारी!

शिवजी की बूटी भाँग रुचिकारी!

ये तो अपनी -अपनी पसंद है,

कोई खुले आम है

तो कोई बोतल बंद है!

हर     आदमी     अपनी   रुचि-

अनुसार स्वच्छन्द है!


आपके चरण हैं

इधर हमारा माथा है,

आपके आशीष के वास्ते

बंदा इधर आता है,

भिखमंगे तो नहीं

हम विशुद्ध 'मतमंगे' हैं!


ये दावत ले लीजिए

अदावत नहीं है आपसे,

हम तो मानते हैं बड़ा

आपको अपने बाप से,

मतलब के लिए

लोग वैशाखनन्दन को

भी बाप बना लेते हैं,

हम तो पाँच बरस में

इधर कदम बढ़ा देते हैं!

 इधर मेरी टोपी है

उधर दो  चरणहैं आपके,

वैसे हम नौकर नहीं हैं

किसी के बाप के।


ये कुरसी ही ऐसी है

कि छोड़ी नहीं जाती है,

पाँच बरस बाद फिर से

नीचे बिछ जाती है,

दाम चीज ही ऐसी है

कि हमें खींच लाती है,

जो कहो सो वादे कर दें,

वादों से आपका उदर भर दें,

जब करेंगे तो निभाना क्या?

इसमें अपना-बिराना क्या?

अपनी जेब  से  क्या 

हमें लगाना है!

उधर से आना है,

इधर लगा जाना है,

इसी के सहारे तो

हमें भी कुछ राग -  रंग 

जमाना है।

सही बात कहें तो इसमें

बुरा क्या है!

आज तो मित्रों ऐसों का ही

तो जमाना है।


आपकी शिकायत है

कि जीतकर दर्शन भी

 नहीं देते,

छत्ते पर मधुमाखियों - सा

चिपक लेते हैं,

क्या करें नाम और नामा

होता ही ऐसा है,

जो डुबा देता है आकंठ

हमारा रेशा -  रेशा है!

'मतमंगे' से हो जाते

 हम  भले - चंगे हैं,

विजयश्री के बाद 

पौ बारह हैं,

क्या करें मजबूरी में

हम हो लेते 

नौ दो ग्यारह हैं।


🪴 शुभमस्तु !


०८.०४.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हर हर गंगे !

आप सब होंगे भले चंगे,

आ गए आपके द्वार पर

फिर पाँच साल बाद,

वही  वही  'मतमंगे' ।


आपके चरणों के दास हैं हम,

चाहे लीजिए मुर्गा 

साथ में ठर्रा या रम!

हाज़िर हैं आपकी सेवा में

कमी नहीं होगी किसी मेवा में!

चाहे  घोटिये शुद्ध शाकाहारी!

शिवजी की बूटी भाँग रुचिकारी!

ये तो अपनी -अपनी पसंद है,

कोई खुले आम है

तो कोई बोतल बंद है!

हर     आदमी     अपनी   रुचि-

अनुसार स्वच्छन्द है!


आपके चरण हैं

इधर हमारा माथा है,

आपके आशीष के वास्ते

बंदा इधर आता है,

भिखमंगे तो नहीं

हम विशुद्ध 'मतमंगे' हैं!


ये दावत ले लीजिए

अदावत नहीं है आपसे,

हम तो मानते हैं बड़ा

आपको अपने बाप से,

मतलब के लिए

लोग वैशाखनन्दन को

भी बाप बना लेते हैं,

हम तो पाँच बरस में

इधर कदम बढ़ा देते हैं!

 इधर मेरी टोपी है

उधर दो  चरणहैं आपके,

वैसे हम नौकर नहीं हैं

किसी के बाप के।


ये कुरसी ही ऐसी है

कि छोड़ी नहीं जाती है,

पाँच बरस बाद फिर से

नीचे बिछ जाती है,

दाम चीज ही ऐसी है

कि हमें खींच लाती है,

जो कहो सो वादे कर दें,

वादों से आपका उदर भर दें,

जब करेंगे तो निभाना क्या?

इसमें अपना-बिराना क्या?

अपनी जेब  से  क्या 

हमें लगाना है!

उधर से आना है,

इधर लगा जाना है,

इसी के सहारे तो

हमें भी कुछ राग -  रंग 

जमाना है।

सही बात कहें तो इसमें

बुरा क्या है!

आज तो मित्रों ऐसों का ही

तो जमाना है।


आपकी शिकायत है

कि जीतकर दर्शन भी

 नहीं देते,

छत्ते पर मधुमाखियों - सा

चिपक लेते हैं,

क्या करें नाम और नामा

होता ही ऐसा है,

जो डुबा देता है आकंठ

हमारा रेशा -  रेशा है!

'मतमंगे' से हो जाते

 हम  भले - चंगे हैं,

विजयश्री के बाद 

पौ बारह हैं,

क्या करें मजबूरी में

हम हो लेते 

नौ दो ग्यारह हैं।


🪴 शुभमस्तु !


०८.०४.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।

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