◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
भूलों का पछतावा कर ले।
बात सीख की मन में धर ले।।
बोता कीकर बीज रोज़ तू,
खारों से निज दामन भर ले।
करनी का फ़ल मिले ज़रूरी,
वैतरणी के पार उतर ले।
अहंकार सिर पर सवार है,
इसकी भी तो खोज खबर ले।
अपना दोष और पर टाले,
ये घर छोड़ दूसरा घर ले।
पानी में नित दूध मिलाता,
अब पानी से ही पेट न भरले?
छलिया,रिश्वतखोर, चोर नर,
घूरे पर चल घास न चर ले?
🪴 शुभमस्तु !
१८.०४.२०२१◆११.३०आरोहणम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें