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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आलू जैसा गोल - मटोला।
बाहर चिकना भीतर पोला।।
रुकता नहीं बूँद भर पानी।
बोले कोमल मीठी बानी।।
सुमन कभी वह दाहक शोला
आलू जैसा गोल - मटोला।।
होता बेपेंदी का लोटा।
नयन चमकते चमड़ा मोटा।।
पीपल पल्लव सम मन डोला
आलू जैसा गोल - मटोला।।
कुर्सी जहाँ उधर ही लुढ़का।
ए सी में सोता पट उढ़का।।
राज नहीं मन का वह खोला।
आलू जैसा गोल - मटोला।।
वसन बगबगे मन का काला।
पड़ा देश का किससे पाला!!
खून चूसकर फूला चोला।
आलू जैसा गोल - मटोला।।
आज यही सच्चा अभिनेता।
लेकर नहीं किसी को देता।।
सदा झूठ ही उसने बोला।
आलू जैसा गोल -मटोला।।
जनता उसे देवता माने।
कनक हार से लगती छाने।।
घृत माखन ज्यों कोकाकोला।
आलू जैसा गोल - मटोला।।
जाता इधर उधर की कहता।
अपनी रौ में उलटा बहता।।
'शुभं'कौन यह बम का गोला।
आलू जैसा गोल - मटोला।।
🪴 शुभमस्तु !
१५.०४.२०२१◆२.१५ पतनम मार्तण्डस्य।
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