◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
लोकतंत्र को भूल रहे हैं।
देश लूट कर फूल रहे हैं।।
मनमानी करने वाले ही,
निशि दिन बोते शूल रहे हैं।
जिनको हुआ कभी सत्ता मद,
खाते देश समूल रहे हैं।
चूसा जाता सदा आम ही,
देखे खड़े बबूल रहे हैं।
मानवता लुटती सड़कों पर,
सत्य न लोग क़बूल रहे हैं।
सब ही सच कहते अपने को,
बकते ऊल - ज़लूल रहे हैं।
'शुभम'उलझना मत झाड़ों से,
नीति रहित ही ऊल रहे हैं।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०४.२०२१◆७.००पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें