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शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गली - गली मतमंगे आए।
गाँव - गाँव में दंगे लाए।।
माया जाल जमा दारू का।
खुला खजाना अब कारू का।
घर -घर जाकर लोग लुभाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
बोतल , थैली बाँट रहे हैं।
अनगिन मुर्गे काट रहे हैं।।
मुफ्तखोर देखो ललचाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
कोरे नोट गिनाता कोई।
उतर गई आँखों की लोई।।
जाति, वर्ण तज पद छू आए।
गली - गली मतमंगे आए।।
खूँटी पर इज्ज़त लटकाई।
खुश हैं सारे लोग - लुगाई।।
सबसे ही 'हाँ- हाँ' करवाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
दावत रोज़ गाँव में होती।
बीज अदावत के नित बोती।।
नाच रहे कालीन बिछाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
लालच में देखो मत बिकते।
इसका खाते उसके दिखते।।
भेद खुला वे जन मरवाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
दलबंदी की जंग सियासत।
मिली प्रधानी बनी रियासत।।
मुखिया वे उसके कहलाए।
गली - गली मतमंगे आए।।
🪴 शुभमस्तु !
०६.०४.२०२१ ◆१०.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
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