गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

समझदार को क्या समझाना ? 🦢 [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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समझदार को क्या समझाना!

भूल गए सब कथन पुराना??


मनमानी  का  आलम  सारा।

लगे  न अपना बालम प्यारा।।

घर -  घर  में  ये सुनें   तराना।

समझदार को क्या समझाना!


मास्क   लगाकर  रहना भाई।

बच  पाएँ तब लोग -  लुगाई।।

सुना इधर निकला उस काना।

समझदार को क्या समझाना!


रखें   परस्पर   दो   गज  दूरी।

भले आ  पड़ी  हो  मज़बूरी।।

पर न आदमी पल भर माना।

समझदार को क्या समझाना!


टीका   लगवाने    जब  जाते।

बोरों  जैसे सट  -  सट  पाते।।

आता है   बस   बात  बनाना।

समझदार को क्या समझाना!


पर   उपदेशक   लोग   घनेरे ।

बड़े -  बड़े   संतों   के    चेरे।।

मति - मूढ़ों   ने ज्ञान न जाना।

समझदार को क्या समझाना!


जब चुनाव का मौसम आता।

मतमंगा   अंधा   हो   जाता।।

कोरोना अब   नहीं  निशाना।

समझदार को क्या समझाना!


जनता  भेड़ - चाल  में  अंधी।

कोरोना से   कर   ली  संधी।।

नियम तोड़कर उसे जिताना।

समझदार को क्या समझाना!


रैली   में    आचार   नहीं   है।

जो कर  पाएँ   वही  सही है।।

नेताजी  को   नहीं   चिताना।

समझदार को क्या समझाना!


वाहन ठूँस - ठूँस   कर  भरते।

चाहे लोग   रुग्ण   हो  मरते!!

लक्ष्य एक  धन  उन्हें कमाना।

समझदार को क्या समझाना!


ग्राहक कब निज हित पहचाना!

दूकानों  में  घुस -  घुस  जाना।।

अपने   ऊपर     वज्र   गिराना।

समझदार को क्या समझाना!


नासमझों की   कमी  नहीं है।

असली मिलते  डमी नहीं है।।

'शुभम'आज मानव मनमाना।

समझदार को क्या समझाना!


🪴 शुभमस्तु !


१५.०४.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।


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