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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नेताजी कहने लगे ,कोरोना है चाल ।
निज विपक्ष को मारने,बुलवाया है काल।।
सत्ता का टीकाकरण, करते अस्वीकार।
नेता सभी विपक्ष के , मान रहे हैं वार।।
सत्तासन जिस दिन मिले,उन्हें प्रतीक्षा आज।
बनवाकर टीका स्वयं, सुधरेंगे सब साज।।
कोरोना - टीकाकरण, राजनीति का खेल।
पटरी उनकी अलग है,अलग चलाते रेल।।
जाति, धर्म को देखकर,नहीं पकड़ता रोग।
कीड़ा जिनकी बुद्धि में,व्यर्थ उन्हें सहयोग।।
अपनी लापरवाहियां, दोष अन्य पर थोप।
कोरोना आहूत कर,दिखा रहा है कोप।।
पहले ही चिपके हुए, छद्म मुखौटे चार।
लगा मुसीका क्या करें,मन में छिपे विकार।।
कृषक और ग्रामीण के,सुन लें उच्च विचार।
वे तो अति मज़बूत हैं,क्यों हो रोग विकार।।
बिना मुसीका दौड़ती, पैदल, बाइक,कार।
चिपक परस्पर हैं खड़े,लंबी लगा कतार।।
बतलाते कुछ चोंचले, झूठ रोग का खेल।
पढ़ते हैं अख़बार भी , देते तथ्य धकेल।।
लापरवाही जब पड़े,भारी घर,परिवार।
दोष मढ़ें सरकार पर,रहता नहीं उतार।।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०४.२०२१◆१२.१५ पतनम मार्तण्डस्य।
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