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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कोरोना से कम नहीं, मानव का आचार।
ख़ुद ही ख़ुद से जूझता, ख़ुद को लेता मार।।
दिल से दिल तो दूर है, तन से चिपकी देह,
मानवता नित ही मरे, रिश्वत ही घर द्वार।।
लाल रक्त से हाथ धो, रिश्तों में दे आग,
जैसे भी पर धन मिले, दूषित जन व्यवहार।।
गबन, डकैती, चोरियाँ, हुईं आज ये आम,
कोरोना समझा रहा, कर ले मनुज सुधार।
जाति, वर्ण की छाँव में, जीता मानव आज,
नेता ही रोगाणु हैं, करते विष संचार।
बिना मिलावट के मिले,चोरों को क्यों चैन?
पानी में दुहता मनुज,गाय, भैंस पय - धार।।
पर धन हरने के लिए,लड़ते लोग चुनाव,
जनसेवा के नाम पर, करते निज उद्धार।
शुद्ध नहीं जब आदमी, कैसे सुधरे देश,
भाँग कुएँ में है पड़ी, जीना है दुश्वार।
ज़हर मिले सब दूध,फल,शाक,अन्न,घी,तेल,
कोरोना आह्वान है, बैल मुझे आ मार।
दोषारोपण और पर, मानव की बदनीति,
स्वयं पैर में मारता, लौह कुल्हाड़ी धार।
'शुभं'सुधर जाआज भी,वरना लिखा विनाश
कोरोना से भीततम,मानव का संसार।।
🪴 शुभमस्तु !
१२.०४.२०२१◆४.४५पतनम मार्तण्डस्य।
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