बुधवार, 21 अप्रैल 2021

बसो मन मेरे,मेरे राम 🛕 [ गीत ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बसो   मन    मेरे ,  मेरे   राम।

तुम्हीं हो राम तुम्हीं घनश्याम।।


तुम  ही  दाता तुम  ही  त्राता।

तुम प्रतिपालक भाग्यविधाता।।

राम   से  चलते   सारे   काम।

बसो  मन  मेरे  ,  मेरे    राम।।


नवमी चैत्र शुक्ल  तिथि आई।

कौशल्या - गृह  बजी बधाई।।

धन्य हो गया अयोध्या - धाम।

बसो  मन  मेरे ,  मेरे    राम।।


धरा के कण-कण में तव वास।

राम  से  चलती  है   हर श्वास।।

रात - दिन हर सुबहो हर शाम।

बसो    मन     मेरे ,  मेरे   राम।।


राम  ने   लंकेश्वर   को   मार।

किया  माँ  सीता का उद्धार।।

किया है प्रभु ने समर -विराम।

बसो   मन   मेरे ,  मेरे   राम।।


दया, करुणा  के सागर आप।

नाम   से  मिट जाते हैं  पाप।।

राम से  सम्भव  है  हर  काम।

बसो   मन  मेरे ,   मेरे  राम।।


अजामिल , गीध  उतारे  पार।

दिया केवट को प्रभु ने  तार।।

सकल सौंदर्य,शक्ति अभिराम।

बसों   मन   मेरे ,  मेरे   राम।।


आदि कवि ने जप उलटा नाम।

ब्रह्म-सा पाया पद अभिराम।।

'शुभम' की रहे भक्ति अविराम।

बसो   मन    मेरे ,  मेरे   राम।।


🪴 शुभमस्तु !


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