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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बसो मन मेरे , मेरे राम।
तुम्हीं हो राम तुम्हीं घनश्याम।।
तुम ही दाता तुम ही त्राता।
तुम प्रतिपालक भाग्यविधाता।।
राम से चलते सारे काम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
नवमी चैत्र शुक्ल तिथि आई।
कौशल्या - गृह बजी बधाई।।
धन्य हो गया अयोध्या - धाम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
धरा के कण-कण में तव वास।
राम से चलती है हर श्वास।।
रात - दिन हर सुबहो हर शाम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
राम ने लंकेश्वर को मार।
किया माँ सीता का उद्धार।।
किया है प्रभु ने समर -विराम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
दया, करुणा के सागर आप।
नाम से मिट जाते हैं पाप।।
राम से सम्भव है हर काम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
अजामिल , गीध उतारे पार।
दिया केवट को प्रभु ने तार।।
सकल सौंदर्य,शक्ति अभिराम।
बसों मन मेरे , मेरे राम।।
आदि कवि ने जप उलटा नाम।
ब्रह्म-सा पाया पद अभिराम।।
'शुभम' की रहे भक्ति अविराम।
बसो मन मेरे , मेरे राम।।
🪴 शुभमस्तु !
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