शनिवार, 10 अप्रैल 2021

ग़ज़ल 🍃🍃


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

फ़िर      वही      लहर      है।

गाँव  -   गाँव       कहर    है।।


हर        गली         धूमधाम,

आठ   -    आठ     पहर    है।


आदमी    ही    आदमी    को,

बन    गया        जहर      है।


शुष्क        कूप        हैंडपम्प,

बह      रही        नहर       है।


शून्य          है     आदमियत,

कैसा  अब         दहर     है।


आदमी      क्या       आदमी,

अगर         बे -  महर      है!


कह    रहा      ग़ज़ल  'शुभम',

किन्तु       बे -  बहर         है।


🪴 शुभमस्तु !


१०.०४.२०२१◆७.३० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...