गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

मैं कपि वन का मुखिया होता🐒 [ बालगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🐒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मैं    कपि      वन   का   मुखिया    होता।

एक    न     कोई         दुखिया   होता।।


नर    - वानर      में       भेद   नहीं    है।

जो  उनमें       वह    सभी   यहीं    है।।

मैं   भी   दुख        में      नयन  भिगोता।

मैं   कपि     वन    का  मुखिया   होता।


शेर    नहीं      तरु    पर    चढ़   पाता।

धरती      पर      ही     दौड़ लगाता।।

उछल -    कूद  कर  द्रुम   पर सोता।

मैं   कपि      वन  का  मुखिया  होता।


शेर   न       बस्ती     में    जाता    है।

शर्माता   या    भय        खाता   है।।

बीज       एकता      के      मैं   बोता।

मैं    कपि  वन   का  मुखिया होता।।


चूहा    ,शेर    ,    हिरन     वन  हाथी।

होते     मेरे         सब      ही   साथी।।

लगता        नित्य     नदी     में   गोता।

मैं   कपि   वन  का     मुखिया   होता।।


दूर         समस्याएँ           मैं    करता।

दुख     आते    उनको      भी  हरता।।

सबके    बोझ     पीठ        पर   ढोता।

मैं    कपि     वन  का  मुखिया  होता।।


पाँच      साल     को     चुन कर   देखें।

करें     'शुभम'   मत         मीनें - मेखें।

मैं   न     कभी  अवसर   निज  खोता।

मैं   कपि    वन   का   मुखिया  होता।।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०४.२०२१◆१०.३०आरोहणम मार्तण्डस्य।

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