मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

कोरोना खुद ही खो जाए!👬🏻 [ गीत ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

हर   घर  में चुनाव  हो  जाए।

कोरोना  खुद  ही  खो जाए।।


पति - पत्नी  में  जंग करा दो।

प्रत्याशी का  फार्म भरा  दो।।

घर की शांति,मिटे मिट जाए।

कोरोना खुद   ही  खो जाए।।


देखेगा     चुनाव     कोरोना।

नहीं बचेगा   रोना  -  धोना।।

रैली को सब   ही  ललचाए।

कोरोना  ख़ुद ही  खो जाए।।


हो चुनाव  हर गली -गली में।

हो बहार तब कली-कली में।

आपस में सुत-पिता लड़ाए।

कोरोना ख़ुद ही  खो जाए।।


एक साथ   चुनाव  हो भारी।

शेष  न रह   पाए   बीमारी।।

हर घर में   नेता   उग  आए।

कोरोना ख़ुद ही  खो जाए।।


ख़ुद भी पीयें  पिलाएँ सबको।

चिकन शोरबा के सँग रम को

बना पैग   पर   पैग   पिलाएँ।

कोरोना  ख़ुद ही   खो जाए।।


नहीं मास्क  भी  रहे  ज़रूरी।

बढ़  जाए   बीबी   से   दूरी।।

हाथ रगड़ मल-मल पछताए।

कोरोना ख़ुद ही  खो  जाए।।


जो  चुनाव की  जंग  करेगा।

कोरोना    से   नहीं  मरेगा।।

भले अदावत से  मर  जाए।

कोरोना ख़ुद  ही खो जाए।।


नहीं रोड -   शो  करना होगा।

आँगन में   निबटाना   होगा।।

रैली   की    पैट्रोल     बचाए।

कोरोना ख़ुद   ही  खो जाए।।


लड़ें  परस्पर   जीजा - साली।

देवर -भौजी   लिए  दुनाली।।

कोई   नहीं    बचाने     आए।

कोरोना ख़ुद  ही   खो जाए।।


कोरोना   चुनाव    से  डरता।

मेले , शादी    में    फुंकरता।।

विद्यालय    में    पढ़ने  जाए।

कोरोना  ख़ुद   ही खो जाए।।


नेताओं   से   डर   है  भारी।

बजवा  देंगे    बेला ,  थारी।।

उनसे कदम सात भय खाए।

कोरोना ख़ुद   ही खो जाए।।


🪴 शुभमस्तु !

०६.०४.२०२१◆६.३० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...