गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

पाँच साल में 🍒🫐 [ चौपाई ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पाँच  साल  में  एक  हि बारा।

लोकतंत्र   का   पर्व  पधारा।।

सोते  -  से     जागे   मतमंगे।

बोल  रहे   हैं हर -  हर  गंगे।।


मतदाता    के    द्वार   पधारे।

वंदन   करते जा -  जा सारे।।

चौपालों  पर   दावत   होती।

जग जाए जो  जनता सोती।।


रचि-रचि के  पकवान बनाते।

जो भाता सब  रुचि से पाते।।

मुर्गा,  मछली ,  रोटी ,  दारू।

खुला खज़ाना   जैसे कारू।।


  दाम,   दावतें ,   दारू   देते।

लोग - लुगाई  खुश  हो लेते।।

आश्वासन  की   बँटी मिठाई।

खुश हैं चाचा,  चाची , ताई।।


गाँवों   की    सरकार  बनेगी।

मौजों  की  चदरिया  तनेगी।।

मौसम है    रैली -  थैली का।

राग - रंग की नित वैली का।।


जब चुनाव  का मौसम आता।

कोरोना टिकने   कब पाता??

मुँह पर नहीं  मुसीका रखना।

माल मुफ़्त का खाना चखना।


दूरी   रखने  की    सब  बातें।

कोरी   झूठी   हैं   ये    घातें।।

तान - तान  कर  मारो  वादे।

भले न   मन   में नेक इरादे।।


कहने में अपना  क्या  जाता!

सच से   नहीं  दूर का नाता।।

नेताजी    से    दूर     सचाई।

झूठे  वादों   की    प्रभुताई।।


नीति न कोई   नीयत  खोटी।

मिले कमीशन  चुपड़ी रोटी।।

पूजा ,पाठ ,  हवन  करवाएँ।

मन्नत को देवी -  दर  जाएँ।।


नोट, वोट   की   संगत   ऐसी।

वादों की   फिर ऐसी -तैसी।।

भरें  दाम से   खूब   तिजोरी।

रहें  ठाठ   से छोरा -  छोरी।।


चाँदी      काटेंगे       मतमंगे।

पर  हमाम  में वे   सब  नंगे।।

मिलजुलकर सबको खाना है

कौन नहीं जग   में काना है!!


चोर -  चोर     मौसेरे    भाई।

जान रहे  सब लोग - लुगाई।।

किसे देश  की   चिंता भारी?

बाँटेंगे  क्यों?  सभी तुम्हारी।।


दाता - मगता   एक  समाना।

बिना डकारें    लिए पचाना।।

'शुभम' पर्व की ख़ुशी मनाएँ।

मत देने   को   घर से  जाएँ।।


✍️ शुभमस्तु !


०८.०४.२०२१◆१.४५पतनम मार्तण्डस्य।

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