मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

 तुम डाल-डाल हम मालामाल!🐒 

 [ व्यंग्य ]

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 ✍️ व्यंग्यकार ©

 🐒 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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              अब धरती पर रहना अभिजात्य मानव का काम नहीं रह गया है।वह भूल गया है कि इस धरती माँ की गोद में ही उसने ये मानव यौनि धारण की है। वह ऊपर और ऊपर और उससे भी ऊपर उड़ना चाहता है। लगता है कि उसका धरती पर रहना उसकी दृष्टि में मानव का काम नहीं है। ये तो केवल और केवल कीड़े - मकोड़ों, पशु - पक्षियों के रहने की जगह भर है। उसे तो बस हवा में उड़ना और आकाश में रहना है।इसलिए उसे हवाई काम करना ही प्रिय है। 

              आज का 'प्रतियोगी युग ' उसे मानव शरीर मे ही मानव से इतर जीव बनाए दे रहा है। देखने पर तो वह मानव ही प्रतीत होता है ,किन्तु उसकी आंतरिक दृष्टि और भावना उसे कुछ अलग ही प्रकार से सोचने और बनने के लिए प्रेरित करती प्रतीत हो रही है। मानव ,हर अगले मानव का , चाहे वह उसका मित्र हो ,पड़ौसी हो , शत्रु हो ,रिश्तेदार हो ; प्रतिद्वंद्वी ही बनाने को उद्वेलित कर रही है। सात्विक प्रतिस्पर्धा से इतर वह तामसिक प्रतिद्वंद्वी ही बन गया है। उसे नीचा दिखाने के लिए कहीं भी वह कम नहीं रहना चाहता । यदि पड़ौसी का शगुन खराब करना हो ,तो भी वह अपनी नाक कटवाने के लिए सहर्ष तैयार रहता है।अपनी नाक कटती हो तो कट जाय ,पर उसका शगुन तो बिगड़े। यह 'उच्च मानसिकता' उसे कुछ भी करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।उसे हर हाल में अपने को उससे श्रेष्ठतर सिद्ध करके जो रहना है। इस काम के लिए उसे कितने ही कुत्सित साधन अपनाने पड़ें , उसे सहज औऱ सहर्ष स्वीकार्य हैं। उसका एक ही परम लक्ष्य है अपने को उससे हर प्रकार ऊँचा सिद्ध करना। 

               उसे नहीं पता कि बुरे साधनों से पाई गई उपलब्धि बुरी ही होती है। जिसका फल घड़े को पूरी तरह भरने औऱ बीच चौराहे पर फूटने पर ही प्राप्त होता है औऱ उसे नंगी आँखों से सारा जमाना देखता है । फिर तो सब यही सोचते औऱ कहते हुए ही दिखाई देते हैं कि हम तो गुबरैला जी को बहुत बढ़िया औऱ विद्वान व्यक्ति समझते थे ,पर अब हमें अब अपनी समझदानी बदलनी ही पड़ेगी।

            दूसरा चाहे डाल- डाल पर कूदन - क्रिया करे , चाहे पात - पात पर लात खाए, मात खाए, पर हम हर हाल में माल खाएँ,माल बनाएं ,माल खूंदें, माल रौंदें, पर दूसरा डालों के जाल में ही भटकता रहे। माल-माल मेरा ,डाल - डाल तेरा। तेरा डाल पर बसेरा।हर तरह से लाभ हो मेरा। बस यही नीति औऱ नीयत , भले कोई कहे इसे बदनीयत , बस यही तो है उनकी सीरत । यहीं पर है उनका प्रयागराज तीरथ। उड़ने लगा है अब आसमान में अपना रथ। नेता-पुत्र भी टॉल -टैक्स नहीं चुकाता। उलटा - टॉल अधिकारी को धमकाता। उलटा चोर कोतवाल को डाँटता। साहित्य की किताब में एक और कहावत बाँटता।अपनी अभिजात्यता में सभी को कीट-पतंगा समझता।

             दूसरे को हरी -हरी डालों पर भटकाने के 'पवित्र उद्देश्य' से उसे दिग्भ्रमित करने से भी नहीं चूकता । वरन इसे वह अपना परम सौभाग्य समझता है कि यह सुअवसर उसे प्राप्त हुआ । यदि यह सुअवसर उसे न मिलता तो कैसे वह उसे भटकाने का श्रेय ले पाता।अपनी 'उच्च उपलब्धि' की नींव दूसरे के पतन के पटल पर जो रखी हुई है।किसी को उचित सलाह देना भी उसके लिए अपराध है।दूसरे का पतन उसकी प्रसन्नता का विशेष कारण है।जब हाथ की सभी अँगुलियां भी समान नहीं हैं ,तो आदमी आदमी में समानता की बात सोचना एक अज्ञानता पूर्ण बात होगी। सामने वाले को ऊँचा मत उठने दो , तभी तुम्हारे अधरों की स्मिति की लम्बाई चौड़ाई में अभिवृद्धि हो सकती है। यही मानव की प्रगति का सूचक है। यही कारण है कि पड़ौसी पड़ौसी का, मित्र मित्र का , सम्बन्धी सम्बन्धी का , यहाँ तक कि देश देश का प्रत्यक्ष किंवा परोक्ष प्रतिद्वंद्वी बना हुआ है। कभी - कभी खुलकर शत्रु बना हुआ है। 

             आज दुनिया भले बारूद के ढेर पर खर्राटे ले रही हो। पर उस बारूद का भी बाप कोरोना उसे आँखें दिखाता हुआ मानो यही कह रहा है कि 'चुपचाप बैठा रह उस्ताद! तेरे औऱ मेरे काम करने का ढंग भले ही अलग -अलग हो ,पर उद्देश्य तो एक ही है: इस आदमी के अहंकार का भस्मीकरण, सो मैं किये दे रहा हूँ। तू आराम से बैठ।देख इसकी करनी की सजा मैं किस तरह से दे रहा हूँ कि आज सारे धरती लोक में त्राहि माम! त्राहि माम!! मची हुई है। जब तक आदमी अपने गरूर के महल से नीचे नहीं उतरेगा , मुझे ऐसा करना ही होगा। देखा न ! कैसे इसका ज्ञान, विज्ञान, धर्म , अध्यात्म, ज्योतिष, शास्त्र :- सब एक कौने में उठाकर धर दिए हैं मैंने । वह अब किसी अनहौनी की प्रत्याशा में हाथ पर हाथ रखे बैठा है कि अब कोई अवतार पुरुष आएगा, और मुझे छूमंतर कर देगा। तभी तो मैं कहता हूँ कि तुम डाल-डाल हम मालामाल।' 

  🪴 शुभमस्तु ! 

 २०.०४.२०२१◆१.५०पतनम मार्तण्डस्य।

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