बुधवार, 29 जनवरी 2025

नहाने से पुण्य! [ व्यंग्य ]


042/2025 

 

 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 आप यदि सुनने में रुचि रखते हों तो एक नई बात बताऊँ। यदि आप ज्यादा बड़े ज्ञानी-ध्यानी हों तो आप को यह बात मुझसे पहले से भी पहले ज्ञात हो सकती है।नई बात यह है कि सुना है कि नहाने से भी पुण्य मिलता है। जो लोग नहीं नहाते ,इसका मतलब यह हुआ कि वे पाप करते हैं अर्थात पापी हैं।यह तो एक सामान्य दैनिक चर्या है। यदि पुण्य कमाना है तो सौ काम छोड़कर नहा जरूर लीजिए।चोरी करिए,डकैती डालिए,रिश्वत लीजिए,गबन कीजिए,शुद्ध माल में कमाल कीजिए, चाहे लीद को धनिया बनाइए या पानी को दूध, चर्बी को देशी घी, मैदा को असली हींग,पीले रंग को हल्दी, ईंट के चूर्ण को लाल मिर्च बनाइए।ये सब कीजिए, इनसे बड़ा पुण्य क्या हो सकता है ,क्योंकि यह आपका दैनिक कार्य है।पर नहाना मत छोड़िए।

 नहाने के उपरांत माथे पर तिलक और देह पर छापा लगाने का विशेष महत्त्व है। यदि ऐसा हो जाए तो कहना ही क्या ! पाप तो ठहर ही नहीं सकते। बिलकुल चिकने घड़े जैसी स्थिति हो जाती है।जैसे चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, वैसे ही नहाने के बाद तिलक छाप लगने से पाप पलायन कर जाते हैं। हो सके तो ये भी कर लीजिए।

 यदि नहाना पुण्य नहीं होता तो सुअर भी नाला-नहान नहीं करता। भैंस तालाब-नहान नहीं करती। मछलियाँ तो नहाने को इतना अधिक महत्त्व देती हैं कि रात दिन 365 दिन बारहों मास नहाती ही रहती हैं।मेढक महोदय से क्या पूछना कि नहाने की क्या महिमा है। हंस ,बतख, बगले,सारस आदि सभी स्नान -भक्त हैं।जब पानी से निकलेंगे ,तभी तो पाप लगेगा।इसलिए पड़े रहो,नहाते रहो,उदर पूर्ति भी और नहाते रहना भी। इन्हें भी बाकायदा पाप-पुण्य का पूर्ण ज्ञान है।चाहे कुछ भी करें ,पर सब छोड़कर नहाएंअवश्य। नहाने से देह का मैल साफ होता है,इसलिए भीतर चाहे जो कुछ भरा रहे पर देह के गेह पर नेह लेपन होना ही चाहिए। क्योंकि पाप वहीं पर तो चिपक सकते हैं।पानी में पाप प्रक्षालन की तीव्र क्षमता होती है।उसमें भी यदि गंगा जैसी नदी का जल मिल जाए तो सात -सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाए। 'सामूहिक पाप निवारण उत्सवों' को कभी नहीं भूलना चाहिए। ये कम से कम प्रत्येक मास में चार -पाँच बार और कभी-कभी शडवार्षिक और कभी -कभी द्वादश वार्षिक आते हैं। यहाँ किश्तों में पाप -शोधन किया जा सकता है।ऐसे अवसरों को कभी नहीं भूलना चाहिए।एकादशी,अमावस्या,पूर्णिमा आदि तिथियाँ नदियों में स्नान कर पाप -प्रक्षालन हेतु ही बनाई गई हैं।यों तो घर की पटिया पर या बाथरूम की सीट पर बैठकर नहाया जा सकता है ,पर नदिया-नहान का महान महत्व है।वैसे तो पाप धोने के लिए कहीं भी नहाया जा सकता है। बचपन से पनारे के नीचे ,छत आँगन या गली सड़कों पर नहाते और पाप का बोझ हलका करते चले ही आ रहे हैं। तब सचैल और अचैल दोनों ही प्रकार से स्नान होता था। नंग -धड़ंग नहाने से कभी किसी ने नहीं रोका - टोका। वह अपनी प्राकृतिक अवस्था थी,प्राकृतिक रहन -सहन का स्वर्णिम युग था। अब ऐसा वैसा कुछ भी सम्भव नहीं है।सब समय -समय की बात है। स्वर्ण युग ज्यादा लंबी अवधि का नहीं होता। 

 नहाने के बाद आप सबने यह महसूस किया होगा कि शरीर हलका हो गया ,एक दम भार रहित। यह भार हमारे जीवन के उन पापों का ही होता है,जिन्हें हम गबन, रिश्वत, मिलावट,झूठ,चोरी,बेईमानी आदि से अर्जित कर लेते हैं।नहाए कि पाप -भार शून्य। इसलिए नहाना मत छोड़िए।यदि निर्मल शीतल जल से न नहा सकें तो उसे हलका गरम या गुनगुना कर लीजिए। पर नहाइए जरूर। जाड़े में भला कौन नहाना चाहता है,किन्तु जब ध्यान हमें हमारे पापों की ओर जाता है तो कड़कड़ाती हुई ठंड में भी विवश होकर नहाना पड़ता है। जिसके आदि और अंत में ही 'न' या 'ना' लगा हो ,परन्तु करें तो क्या करें। पाप प्रक्षालन का एक मात्र महत मंत्र है कि नहाया जाए। भला कोई पाप- बोझ का कुंभ सिर पर रखकर क्यों जाना चाहेगा ?इसलिए साथ के साथ बोझ हलका करने का विधान पहले से ही बना दिया गया है। 

 पानी, पाप और नहाने की तिगड़ी बड़े काम की है। पानी नहीं तो नहाना कैसा ? ज्यादा पाप इकट्ठे होने पर साबुन के इस्तेमाल से कोई इनकार नहीं है। पर नहाएँ जरूर।नहाने के लिए पसीना या परिश्रम अनिवार्य नहीं। जो पसीना नहीं बहाते ,वे भी नहाते हैं और जो परिश्रम नहीं करते ,वे भी नहाते हैं। नहाने का एकमात्र उद्देश्य पाप ही हैं। जितने अधिक पाप,उतना ज्यादा नहाना। इसीलिए पड़ता है कुछ बड़े पापी जन को गङ्गा या यमुना में नहाना। 

 25.01.2025● 7.45 प०मा० 

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