सोमवार, 20 जनवरी 2025

धूल लदी मन पर है भारी [ गीतिका ]

 006/2025

       


सब  कुछ  बदल रहा  क्षण-क्षण में।

प्रभु का  वास  यहाँ   कण-कण में।।


शांति  नहीं   मानव     को    प्यारी,

जुटा  हुआ   पल - पल वह रण में।


कलियों का  विकास    सुमनों    में ,

सुमन  व्यस्त   हैं   रस - वर्षण   में।


धूल   लदी  मन   पर    अति  सारी,

झाड़    रहा   है  मुख    दर्पण   में।


मानव      डूबा      अहंकार      में,

आग  धधकती   मन   के   व्रण में।


जनक -जननि   की   सेवा  कर ले,

लगा न जीवन   अपना   पण   में।


'शुभम्'  सोच  संकीर्ण   अशोभन,

किंचित शांति नहीं  जनगण    में।


शुभमस्तु !


06.01.2025●5.30आ०मा०

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